महावीर सांगलीकर
किसी भी महान विचारक के विचारों को उसके अनुयायी ही अच्छी तरह से खत्म कर सकते हैं. ऐसा करना उनके लिये एक जरुरी बात होती है, क्यों कि उस महान विचारक के विचार या तो वे पचा नही पाते, या इस प्रकार के विचार उनकी समझ के बाहर होते है. वे इन विचारों को छुपाने के लिये उस महान विचारक की जीवनी लिख देते है और उसमें उसके विचार लिखने के बजाय चमत्कार वाली घटनाए लिखते हैं.
इससे भी आगे जाकर वे उसे भगवान बना देते हैं. उसके मंदिर बनवाते हैं, ता कि भक्त लोग आये, और मूर्ती के सामने माथा टेक कर चले जाये. किसी प्रकार का विचार करने कि जरुरत नही होती. सामने जो मूर्ती है वह भगवान की नही, बल्की किसी महान विचारक की है यह बात वे लोग सोच ही नही सकते. फिर उस के विचारो से क्या लेना देना?
ऐसा कई महान विचारकों के साथ हुआ है. बुद्ध के साथ भी यही हुआ, और महावीर के साथ भी.
महावीर के विचारो के साथ खिलवाड
आइए देखते है कि महावीर ने दुनिया के सामने कौन से विचार रखें और उसके तथाकथित अनुयायीयों ने महावीर के विचारो के साथ कैसा खिलवाड किया.
- महावीर जैन धर्म के संस्थापक नही थे बल्की सुधारक थे. उन्होंने पहले से चली आ रही कई परंपराओ को, रुढीयो को छोड दिया, तोड दिया. मजे की बात देखिये, महावीर के तथाकथित अनुयायी आज भी कई गलत परंपराए बडी श्रद्धा के साथ निभा रहे हैं. उन्हें तोड़ना नही चाहते.
- महावीर ने अपना पहला आहार एक दासी के हाथो लिया, वह दासी कैद में थी और वह कई दिनों से नहायी तक नही थी. उसे विद्रूप किया गया था और उसके कपडे भी गंदे-मैले थे. हम देखते हैं कि महावीर कभी कभार ही खाना खाते थे, और वह आम आदमी के घर परोसा हुआ होता था. कभी कुम्हार के घर का, कभी लुहार के घर का तो कभी किसान के घर का. लेकिन आजकल के जैन साधू सेठ-साहुकारो के घर का ही खाते हैं. जैन धर्म के एक संप्रदाय के साधुओ ने तो आहार लेने का भी कर्मकांड बनाया हैं.
- महावीर के संघ में सभी जातियो के लोगो को मुक्त प्रवेश था. महावीर के संघ के कई साधू शूद्र और चांडाल तक थे. महावीर कहते थे ‘एगो मनुस्स जाई’ यानि मनुष्य जाति एक हैं. लेकिन आजकाल के जैन साधू खुद जातीवादी बन गये हैं और समाज में जातीवाद फैला रहे हैं. और जैन समाज तो इतना महान है कि इनके मंदिरों में अजैनियो को तो छोडियो, दुसरे संप्रदाय के जैनियों को भी जाना मुश्किल होता है. और बाते करते है विश्व धर्म की!
- महावीर शोषण, गुलामी, हिंसा, झूठ, चोरी, परिग्रह जैसी बातो के खिलाफ थे. आजकल के जैन साधू और लोग सिर्फ हिंसा के खिलाफ ही बोलते है, बाकी सारी बातों को नजर अंदाज कर देते है. सच तो यह है की जैनियों को अहिंसा की बाते करने का कोई अधिकार नहीं है. अहिंसा तो शूर-वीरों के लिए होती है, कायरों के लिए नहीं. एक जमाने में जैन भी शूर वीर थे, क्यों कि तब वे क्षत्रिय थे. अब जादातर बनिए बन गए है. दलाली के, सट्टे-ब्याज के धंदे करते है. ये लोग कहते है की सेना में जाना नहीं चाहिए. अब तो कहने लगे है कि खेती करना भी पाप है, क्यों कि उसमे हिंसा होती है.
- महावीर सादगी के एक महान उदाहरण थे. उनके पास दिखावा बिलकुल ही नहीं था. वह परिग्रह से मुक्त थे. लेकिन आज देखिये, अनुयायीयों ने जैन धर्म का प्रदर्शन बनाये रखा है.
किसी अच्छे धर्म का किसी गलत हातो में पड़ने से क्या हाल होता है, इसका जैन धर्म जीता जागता उदाहरण है.
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