महावीर सांगलीकर
इस लेख में पढिये:
मिडिया की नीति में बदलाव और सोशल मिडिया का प्रभाव
पहले ज्यादातर लोग जैन ही थे
जैन धर्म का प्रभाव बढने के फायदे
प्रचार के लिए क्या किया जाना चाहिए?
कुछ वर्षों पहले तक भारत में जैन धर्म की अधिक चर्चा नहीं होती थी. जिन लोगों के हाथ में कलम और मीडिया था, वे भी जैन धर्म का शायद ही कहीं उल्लेख करते थे. कई बार नकारात्मक बातें ही लिखी जाती थी.
मिडिया की नीति में बदलाव और सोशल मिडिया का प्रभाव
लेकिन अब स्थिति काफी बदल गई है. जैन समाज का प्रभाव और प्रतिष्ठा हर क्षेत्र में बढ़ गई है. जैन युवक और युवतियां हर क्षेत्र में बड़ा काम कर रहें हैं. पूरे देश में हजारों जैन साधु-साध्वी समाज का मार्गदर्शन कर रहें हैं और लोगों को सन्मार्ग पर चलना सीखा रहें हैं. इसलिए जो लोग पहले जैनों को अनदेखा करते थे, वे भी अब (चाहे मजबूरी से ही सही) जैन समाज और जैन धर्म की ओर ध्यान देने लगे हैं.
अब कलम और मीडिया सभी वर्गों के हाथ में है. पत्रकारिता में आज विभिन्न समाजों के लोग बड़ी संख्या में सक्रिय हैं. इनमें से कई पत्रकार और लेखक जैन समाज और जैन धर्म पर ध्यान देते रहते हैं.
जैन समाज ज्यादातर बिझनेस कम्युनिटी होने के कारण, और मीडया का अर्थकारण बिझनेस कम्युनिटी पर निर्भर होने के कारण भी मिडिया जैन धर्म और समाज के बारे में लिखती और बोलती रहती है.
सोशल मीडिया ने हर व्यक्ति को अपनी बात कहने का अवसर दिया है. इंटरनेट और सोशल मीडिया की वजह से अब कोई भी जानकारी छिपी नहीं रह सकती.
इन सभी कारणों से एक बड़ा लाभ यह हुआ है कि गैर-जैन समाज भी बड़ी संख्या में जैन धर्म की ओर आकर्षित हो रहा है. यह जैन धर्म के प्रसार के लिए एक बहुत बड़ी अवसर है.
पहले ज्यादातर लोग जैन ही थे
हमें एक बात याद रखनी चाहिए कि ईस्वी सन की 13वीं शताब्दी तक पूरे भारत में जैन धर्म का पालन करने वालों की संख्या बहुत अधिक थी. उस समय जैन धर्म एक जनधर्म था. इसके कई ऐतिहासिक, साहित्यिक और पुरातात्विक प्रमाण मौजूद हैं. लेकिन बाद में विदेशी आक्रमणों और सामाजिक कारणों से जैन धर्म का पतन हुआ. समाज का बड़ा वर्ग, जो प्रायः जैन अनुयायी था, जैन धर्म से दूर चला गया.
आज की कई हिंदू जातियां पहले जैन थीं. आज भी कई हिंदू जातियों में कुछ लोग जैन धर्म का पालन करते हैं.
कभी भारत में जैन अनुयायियों का प्रतिशत 30 से 50 के बीच था. इसमें समाज के निचले तबके के लोग भी बड़ी संख्या में शामिल थे. उस समय वैदिक धर्म और ब्राह्मणों का प्रभाव कम हो चुका था, इसलिए उन्होंने जैन धर्म का विरोध करने के लिए कई तरह की रणनीतियाँ बनाई. धीरे-धीरे बहुजन समाज फिर से ब्राह्मण वर्चस्व का शिकार बना. ब्राह्मणी प्रथाएँ, कर्मकांड, ऊँच-नीच, सामाजिक भेदभाव फिर से बढ़ने लगे. उसके बाद विदेशी आक्रमण हुए और पूरा भारत विदेशी और ब्राह्मण वर्चस्व के अधीन हो गया.
इन सबका दुष्परिणाम आज भी हमारे सामने है.
अब जब जैन धर्म के प्रचार के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनी हैं, तो स्थापित जैन समाज और जैन साधुओं को गंभीरता से सोचने की जरूरत है. खासकर इस बात पर कि जैन धर्म को समाज के अंतिम व्यक्ति तक कैसे पहुँचाया जाए.
जैन धर्म का प्रभाव बढने के फायदे
आज भारत में जैन अनुयायी लगभग आधा प्रतिशत हैं. यदि हम इस संख्या को 5 प्रतिशत तक ले जाएं, तो क्या होगा? भारत में एक सामाजिक और धार्मिक परिवर्तन होगा. समाज को निम्नलिखित लाभ मिलेंगे–
- जीवदया और शाकाहार का महत्व बढ़ेगा.
- लोग बड़ी संख्या में नशामुक्त और शाकाहारी बनेंगे.
- समाज में उद्यमिता बढ़ेगी, जिससे भारत की उन्नति में वृद्धि होगी.
- हिंसक आंदोलन, दंगे और जातीय संघर्ष कम होंगे.
- लोगों में परस्पर सहयोग बढ़ेगा.
- लोगों की औसत आयु बढ़ेगी.
- लोगों में चॅरिटी और दूसरों की सहायता करने की प्रवृत्ती बढ़ेगी.
- समाज में ब्राह्मणी वर्चस्व, कर्मकांड, उंच-नीचता जैसी समस्याएं कम होंगी.
- जैन शिक्षाओं के कारण लोग मानसिक रूप से शांत और संतुलित बनेंगे.
- ध्यान और स्वाध्याय से डिप्रेशन और तनाव कम होंगे.
- युवाओं में सकारात्मकता, अनुशासन और नेतृत्व क्षमता बढ़ेगी.
- पर्यावरण की रक्षा और पशु संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा.
प्रचार के लिए क्या किया जाना चाहिए?
- भारत के लाखों गैर-जैन लोग जैन धर्म अपनाना चाहते हैं. उनके लिए जैन साधुओं और कार्यकर्ताओं को एक सुविचारित योजना और व्यवस्था बनानी चाहिए.
- उन समाजों की सूची तैयार की जानी चाहिए जो पहले जैन थे लेकिन समय के साथ जैन धर्म से दूर हो गए. उन्हें वापस जैन धर्म में लाने के लिए (घरवापसी) जागरण और प्रयास किए जाने चाहिए. इनके बीच प्रभावी प्रचार के लिए उसी समाज के कार्यकर्ता तैयार करने चाहिए.
- समाज के सभी वर्गों को जैन धर्म के आध्यात्मिक और व्यावहारिक (दैनिक जीवन में मिलने वाले) लाभ का महत्व बताना चाहिए.
- प्रत्येक जैन कार्यकर्ता को जैन धर्म का प्रचारक बनना चाहिए.
- प्रस्थापित जैनियों को बड़ी सोच रखनी चाहिए और सम्प्रदायवाद से बाहर निकलकर काम करना चाहिए. इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए कि हमें जैन धर्म का प्रचार करना है, न कि अपने-अपने सम्प्रदाय का. जैन वे ऑफ़ लाईफ के प्रचार को महत्त्व देना चाहिए.
जैन मिशन इस संस्था ने इस दिशा में अपना पहला कदम रखा हैं. आप भी इस मिशन से जुड़ जाइये, आपको एक जिम्मेदारी दी जायेगी. संपर्क कीजिये: 91 8149128895 / jainway@gmail.com
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इस लेख के लेखक महावीर सांगलीकर जैन मिशन के संस्थापक, समाजसेवी, जैन दर्शन और इतिहास के विद्वान और लेखक हैं.
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