डॉ. धिरज जैन, दुबई
आजकल अचानक एक नया ट्रेंड बढ़ रहा है कि हर शाकाहारी व्यक्ति को वेगन बन जाना चाहिए. सोशल मीडिया पर, यूट्यूब पर और कई कॅम्पेन्स में यह दावा किया जाता है कि वेगन डाइट ही सबसे नैतिक, सबसे स्वस्थ और सबसे आधुनिक जीवनशैली है. लेकिन सच इससे काफी अलग है. खासतौर पर भारत जैसे देशों में, जहां शाकाहार पहले से ही एक संतुलित, प्राकृतिक और शरीर के अनुकूल परंपरा है, वहां बिना सोचे-समझे वेगन बन जाना कई समस्याएं खड़ी कर सकता है.
वेगन डाइट से पैदा होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं
वेगन डाइट में दूध, दही, घी, पनीर और सभी डेयरी पूरी तरह बंद कर दी जाती हैं. शुरू में यह विकल्प स्वस्थ लगता है, लेकिन लंबे समय में शरीर को जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते. प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन B12, आयरन और ओमेगा-3 जैसी चीजें वेगन डाइट में कम होती हैं. इसकी वजह से लोग थकान, कमजोरी, चक्कर आना, बाल झड़ना, हड्डियों में दर्द और रोग प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट जैसी दिक्कतें महसूस करने लगते हैं.
ऊर्जा की कमी, मांसपेशियों का नुकसान और मानसिक थकान
जब शरीर को पर्याप्त प्रोटीन और कैलोरी नहीं मिलती, तो शरीर अपनी मांसपेशियों को तोड़कर ऊर्जा लेना शुरू कर देता है. इससे मांसपेशियों का क्षय, कमजोरी, ध्यान की कमी और लगातार थकान जैसी समस्याएं पैदा होती हैं. कई वेगन लोग कुछ महीनों बाद बताते हैं कि पहले जितनी ताकत और स्टैमिना था, वह धीरे-धीरे खत्म होने लगता है.
महिलाओं, गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के लिए जोखिम
वेगन डाइट महिलाओं के लिए ज्यादा खतरनाक हो सकती है क्योंकि आयरन, B12 और कैल्शियम की कमी से हार्मोनल असंतुलन, एनीमिया और हड्डियां कमजोर होने का खतरा बढ़ जाता है.
गर्भवती महिलाओं में इन पोषक तत्वों की कमी बच्चे के विकास पर सीधा असर डाल सकती है. कई देशों की मेडिकल संस्थाएं यह मानती हैं कि वेगन डाइट गर्भावस्था में जोखिमपूर्ण हो सकती है.
बच्चों के लिए तो यह और भी खतनाक है. उनकी हड्डियां, दिमाग और शरीर बहुत तीव्र गति से बढ़ते हैं. उन्हें प्रचुर प्रोटीन, कैल्शियम और स्वस्थ फैट की जरूरत होती है. वेगन डाइट देने से उनके विकास में रुकावट, कमजोरी और कई बार स्थायी नुकसान का खतरा रहता है.
बुजुर्गों को भी वेगन बनने से बचना चाहिए क्योंकि उन्हें हड्डियों, मांसपेशियों और ऊर्जा बनाए रखने के लिए ज्यादा पोषण की जरूरत होती है. वेगन डाइट उनकी कमजोरी को और बढ़ा सकती है.

वेगन कट्टरता और गलत प्रचार
आजकल इंटरनेट की दुनिया में कुछ समूह और स्वयंभू ‘जानवरों के रक्षक’ इस तरह का माहौल बना रहे हैं मानो जो व्यक्ति वेगन नहीं है, वह स्वभाव से ही क्रूर, असंवेदनशील या जानवरों का दुश्मन है. यह सोच धीरे-धीरे एक प्रकार की कट्टरता और पक्षपाती मानसिकता में बदल चुकी है, जिसमें तर्क, परंपरा और व्यावहारिकता—सबको नजरअंदाज कर दिया जाता है. वेगन जीवनशैली का सम्मान किया जा सकता है, लेकिन इसे एकमात्र सही विकल्प बताकर बाकी सब पर उंगली उठाना न तो उचित है, न ही यह समाज में समझ पैदा करता है.
शाकाहार तो हजारों वर्षों से भारतीय संस्कृति में करुणा, संतुलन और अहिंसा की गहरी परंपरा रहा है. यह केवल भोजन की आदत नहीं बल्कि जीवन का एक अनुशासन है, जिसने पीढ़ियों को स्वस्थ और स्थिर रखा है.
वेगनिज़्म व्यक्तिगत चुनाव है, लेकिन इसे हथियार बनाकर दूसरों को शर्मिंदा करना या उनकी सदियों पुरानी करुणामय परंपराओं को गलत ठहराना केवल भ्रम और गलत प्रचार को बढ़ावा देता है. ऐसी सोच लोगों को पास लाने के बजाय दूर धकेल देती है. वास्तविक करुणा वही है जो विविध जीवनशैलियों को सम्मान दे, न कि उन पर कट्टरता थोपे.
संतुलन ही सबसे अच्छा मार्ग
यदि आप बचपन से शाकाहारी रहे हैं और आपका शरीर वर्षों से दूध, दही, घी और पनीर जैसे दुग्ध उत्पादों से पोषण लेता आया है, तो इन्हें अचानक छोड़ देना शरीर के लिए अचानक बदलाव जैसा झटका बन सकता है. हमारा शरीर उन पोषक तत्वों का अभ्यस्त होता है जो लंबे समय से उसके आहार का हिस्सा रहे हैं. इसलिए एकदम नई और कठोर भोजन-शैली अपनाना कई बार सेहत के लिए जोखिम भी बन सकती है. हर पारंपरिक अच्छी चीज को सिर्फ इसलिए छोड़ देना सही नहीं कि वह किसी नए फैशन या ऑनलाइन ट्रेंड का हिस्सा नहीं है.
शाकाहार अपने आप में नैतिक, स्वास्थ्यदायक और संतुलित है. इसमें ऐसे पौष्टिक विकल्प मौजूद हैं जो ऊर्जा और स्थिरता बनाए रखते हैं. इसलिए सोशल मीडिया देखकर या किसी की नकल करते हुए अचानक वेगन बनने की होड़ में पड़ना समझदारी नहीं है. भोजन उतना ही बदलना चाहिए जितना शरीर सहजता से स्वीकार कर सके.
शरीर की जरूरतों और अपनी परंपराओं का सम्मान करते हुए वही मार्ग चुनना बुद्धिमानी है जो संतुलित, प्राकृतिक और टिकाऊ हो.
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