सामुदायिक विवाह आंदोलन: समय की जरूरत

नितीन जैन, पुणे

MPhone: 9422032523

आज के समय में विवाह से जुड़ी समस्याएं समाज के सामने बड़ी चुनौती बनती जा रही हैं. इसके समाधान के लिए कई जगहों पर वर–वधू परिचय सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें अनेक सामाजिक संस्थाएं सक्रिय भूमिका निभा रही हैं. इन सम्मेलनों में वर–वधू और उनके माता–पिता का आपसी परिचय कराया जाता है, जिससे समय और पैसा दोनों की बचत होती है. यह पहल अब काफी लोकप्रिय हो चुकी है और इसके माध्यम से कई विवाह सफलतापूर्वक तय भी हो रहे हैं. लेकिन इसके साथ-साथ अब जैन समाज में सामुदायिक विवाह आंदोलन को मजबूत रूप से स्थापित करने की आवश्यकता महसूस हो रही है.

हाल के वर्षों में विवाह, जो पहले सोलह संस्कारों में से एक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता था, अब एक बड़े ‘इवेंट’ में बदल गया है. सगाई, प्री-वेडिंग शूट, डेस्टिनेशन मॅरेज जैसी परंपराओं के कारण शादी पर लाखों नहीं बल्कि करोड़ों रुपये तक खर्च हो रहे हैं. खाने-पीने के तरह-तरह के स्टॉल लगाना भी अब शादी समारोह का हिस्सा बन चुका है. इस तरह का दिखावा और खर्च करने की प्रवृत्ति जैन समाज में भी तेजी से बढ़ी है. लेकिन हमारे समाज में मध्यम और गरीब वर्ग के परिवार भी हैं, जिनके लिए ऐसा भारी खर्च उठाना संभव नहीं है. कई बार तो साधारण तरीके से शादी करना भी उनके लिए कठिन हो जाता है. ऐसे में सामुदायिक विवाह समारोह की अवधारणा को समाज में अपनाना आज बेहद जरूरी हो गया है.

पुणे–मुंबई जैसे महानगरों में होने वाली भव्य शादियां अब एक फॅशन बन गई हैं, और यही चलन धीरे-धीरे ग्रामीण इलाकों तक भी पहुंच रहा है. रिसॉर्ट महीनों पहले बुक हो जाते हैं और केटरिंग से लेकर सजावट तक पर भारी खर्च किया जाता है. इन बड़े आयोजनों में करोड़ों रुपये का लेन-देन होता है. लेकिन यह जरूरी है कि समाज का यह धन केवल दिखावे में न जाकर समाजहित के कार्यों में लगाया जाए.

सामुदायिक विवाहों के लाभ

कुछ समाजों में एक या दो लाख रुपये के सीमित खर्च में और चुनिंदा रिश्तेदारों की मौजूदगी में सामुदायिक विवाह सफलतापूर्वक आयोजित किए जा रहे हैं. यही मॉडल जैन समाज में भी आसानी से अपनाया जा सकता है. यदि सकल जैन समाज की विभिन्न सामाजिक संस्थाएं इसमें आगे आएं, तो गरीब और मध्यम वर्ग के जैन परिवारों के लिए विवाह को सम्मानजनक और आनंदपूर्ण ढंग से संपन्न करना संभव हो सकेगा.

एक ही स्थान पर आयोजित होने वाले सामुदायिक विवाह समारोहों से समाज का पैसा सार्थक और पुण्य कार्यों में उपयोग हो सकता है. कोरोना काल में सीमित रिश्तेदारों की उपस्थिति में हुई शादियों को आदर्श उदाहरण के रूप में देखा गया था. उस समय 50 से 75 लोगों की मौजूदगी में सादगी के साथ, फिर भी पूरे उत्साह से विवाह संपन्न हुए. इससे यह स्पष्ट हो गया कि नजदीकी रिश्तेदारों और माता-पिता की इच्छा के अनुसार सादे लेकिन सुंदर विवाह संभव हैं. ऐसे आयोजनों में बचाया गया अतिरिक्त खर्च गरीब बच्चों और जरूरतमंद परिवारों की सहायता में लगाया जा सकता है. इससे हर साल समाज के कई लोगों को सहयोग मिल सकता है.

जैन समाज में दान को हमेशा विशेष महत्व दिया गया है. संकट के समय समाज ने हमेशा बढ़-चढ़कर मदद की है. सामुदायिक विवाह की परंपरा जैन समाज में कुछ स्थानों पर शुरू हो चुकी है, जो निश्चित रूप से सराहनीय है. लेकिन यदि अपने ही समाज के सामुदायिक विवाहों की जिम्मेदारी हमारी सामाजिक संस्थाएं स्वयं उठाएं, तो यह पूरे जैन समाज के लिए गर्व की बात होगी.

++++

नितिन जैन पुणे के एक सामजिक कार्यकर्ता, लेखक व कवि है.

यह भी पढिये …..

दिगंबर-श्वेतांबर विवाह: समय की पुकारकहानी | एक जैन लड़की से प्यार
जैन समाज की घटती हुयी आबादी ….जैन युवकों को सेनाओं में शामिल होना चाहिए….
जैन समाज क्या है? इसका सही स्वरुप जानिये!सम्प्रदायवाद ले डूबेगा जैन समाज को!
जैन हो फिर भी दुखी हो?नए ज़माने में नए जैन धर्म की ज़रूरत

Jains & Jainism (Online Jain Magazine)

They Won Hindi (हिंदी कहानियां व लेख)

TheyWon
English Short Stories & Articles

न्यूमरॉलॉजी हिंदी

2 thoughts on “सामुदायिक विवाह आंदोलन: समय की जरूरत

  1. बहुत बढ़िया , सरल भाषा मे आज के जैन समाज मे क्या होना चाहिए , इसका विवरण किया गया है .

  2. जय जिनेंद्र आजकल लड़की लोग ज्यादा पढ़ ली जाने के कारण उनका दिमाग एगो घमंड में बदली हो गया है इसलिए मन चाहा लड़का ना मिलने का कारण अदर कास्ट में लव मैरिज कोई भी फंसा कर शादी कर लेता है और लड़कियों जैसे में आ जाती है मगर हमारे जैन लड़के कभी भी झूठ नहीं बोलते हैं फंसा नहीं सकते झूठा वादा नहीं करते इसीलिए कुंवारे रह जाते हैं लड़कियों की शादी 18 से 25 साल के अंदर कर देनी चाहिए

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *