साधुता की आड़ में सिद्धांतों की हत्या: महावीर के नाम पर सबसे बड़ा अपराध

भगवान महावीर

नितिन जैन (पलवल, हरियाणा)

मोबाइल: 9215635871

अब यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि वर्तमान समय में ज्यादातर जैन साधु भगवान महावीर के सिद्धांतों का नहीं, बल्कि उनके खुले और निर्लज्ज अवर्णवाद का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. यह कठोर सत्य है कि महावीर आज मंचों पर पूजे जा रहे हैं और व्यवहार में रोज़-रोज़ मारे जा रहे हैं. अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, सत्य और तप—ये सिद्धांत आज प्रवचनों की सजावट हैं, आचरण की कसौटी नहीं. जो धर्म आचरण में न उतरे, वह धर्म नहीं, ढोंग होता है.

महावीर ने साधु को समाज का मार्गदर्शक बनाया था, मालिक नहीं. आज हालात यह हैं कि कई साधु समाज के ठेकेदार बने बैठे हैं—कौन बोलेगा, क्या बोलेगा, कहां कार्यक्रम होगा, किससे चंदा लिया जाएगा, किसे मंच मिलेगा—सब पर नियंत्रण. यह साधना नहीं, सत्ता है; यह त्याग नहीं, वर्चस्व है. अपरिग्रह का उपदेश देने वाले स्वयं प्रभाव, प्रतिष्ठा और निर्णयों के परिग्रह में आकंठ डूबे हुए हैं. वस्त्र गिनाने से अपरिग्रह सिद्ध नहीं होता, जब मन सत्ता से चिपका हो.

अहिंसा की दुहाई देने वाले ही समाज में सबसे अधिक वैचारिक हिंसा फैला रहे हैं. गुटबंदी, फूट, एक-दूसरे की परंपराओं का अपमान, “हम सही—बाकी सब गलत” का अहंकार—यह सब किस आगम में लिखा है? महावीर ने अनेकांत सिखाया था, एकाधिकार नहीं. पर आज अनेक साधु समाज को जोड़ने के बजाय तोड़ने में गर्व महसूस करते हैं. जहांजोड़ नहीं सकते, वहाँ चुप रहना भी धर्म है—पर तोड़ना तो अधर्म की पराकाष्ठा है.

आज साधु का मूल्यांकन साधना से नहीं, प्रचार से होता है. जिसके पास माइक है, वही महान; जिसके पास कॅमेरा है, वही पूज्य. जो आडंबर पर प्रश्न उठाए, उसे विद्रोही कहा जाता है; जो चुपचाप पाखंड को स्वीकार करे, वही आदर्श घोषित होता है. यह कैसी साधुता है, जो प्रश्नों से डरती है? सत्य से भागने वाला साधु नहीं, व्यवस्था का कर्मचारी होता है.

ब्रह्मचर्य और मर्यादा पर बोलना आज “विवाद” कहलाता है, क्योंकि सच असुविधाजनक है. जो मर्यादा तोड़े, उसे बचाया जाता है; जो मर्यादा की बात करे, उसे दबाया जाता है. यह महावीर का संघ नहीं, यह स्वार्थियों का गठजोड़ है. महावीर का नाम ढाल बनाकर जो कुछ भी किया जा रहा है, वह धर्म नहीं, धर्म का अपहरण है.

अब जैन समाज को तय करना होगा—श्रद्धा विवेक के साथ करनी है या गुलामी की तरह. साधु पूज्य हैं, पर अचूक नहीं. प्रश्न करना अपराध नहीं, धर्म है. यदि आज भी श्रावक चुप रहा, तो कल महावीर केवल मूर्तियों में बचेंगे, जीवन में नहीं. महावीर को बचाना है तो सबसे पहले उनके नाम पर चल रहे इस अपर्णवाद के विरुद्ध खड़ा होना होगा—वरना इतिहास हमें माफ़ नहीं करेगा.

++++

नितिन जैन जैन तीर्थ श्री पार्श्व पद्मावती धाम, पलवल (हरियाणा) के संयोजक है.

यह भी पढिये …..

बिना साधुओं और बिना मंदिरों का जैन समाजमोक्ष की बातें करने वाले सुन लो… पहले अपना भेद तो छोड़ो!
अहिंसा : नियम की नहीं, समझ की जरूरतमहावीर और उनके अनुयायी
दलित और आदिवासियों को जैन धर्म अपनाना चाहिए!भाग्यशाली तो वह है जो कर्म से जैन होते हैं…
जैन दर्शन का सारनए ज़माने में नए जैन धर्म की ज़रूरत

Jains & Jainism (Online Jain Magazine)

They Won Hindi (हिंदी कहानियां व लेख)

TheyWon
English Short Stories & Articles

न्यूमरॉलॉजी हिंदी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *