महावीर सांगलीकर
पाइथागोरस कौन थे?
पाइथागोरस एक यूनानी दार्शनिक और एक महान गणिति थे. उनका जन्म 570 ईसा पूर्व में ग्रीस के समोस द्वीप पर हुआ था. उनके ज्यामितीय प्रमेय और सिद्धांत आज भी स्कूलों में पढ़ाये जाते हैं.
इसके अलावा उन्हें आधुनिक अंकशास्त्र (Numerology) के जनक के रूप में जाना जाता है. उनकी संगीत में भी गहरी रूचि थी और वह कहते थे कि संगीत और गणित का नजदीकी संबध है.
वह एक धार्मिक आंदोलन के संस्थापक थे, जिसे पाइथागोरसवाद (Pythagoreanism) के नाम से जाना जाता है. इस वाद के अनुयायियों को पाइथागोरसगोरिअन्स (Pythagoreans) इस नाम से जाना जाता था.
पाइथागोरसवाद की जैन दर्शन के साथ कई समानताएं हैं. इन समानताओं से कहा जा सकता है कि पाइथागोरस जैन दर्शन से प्रभावित थे, क्योंकि उनका काल भारत के महान दार्शनिक वर्धमान महावीर के काल से मिलता-जुलता है. प्राचीन काल से भारतीयों और यूनानियों के बीच गहरा संबंध था और यूनानी लोग भारत आते-जाते रहते थे.
जैन दर्शन और पाइथागोरसवाद की समानताएं | पाइथागोरस पर जैन दर्शन का प्रभाव
⦁ पाइथागोरिअन्स आत्मा के अस्तित्व में विश्वास रखते थे, और पुनर्जन्म में भी विश्वास रखते थे. इतना ही नहीं, वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होने की संकल्पना में भी विश्वास रखते थे. पाइथागोरिअन्स मानते थे कि आत्मा और शरीर अलग-अलग दो अलग चीजें हैं और आत्मा की मुक्ति के लिए तपस्वी जीवन आवश्यक है. पाइथागोरिअन्स भौतिक और शारीरिक सुखों का त्याग करते थे. यह सारी बातें जैन दर्शन की केंद्रीय संकल्पनायें है.
⦁ विशेष खास बात यह है कि पाइथागोरस शाकाहारी थे और पाइथागोरिअन्स के लिए शाकाहारी होना जरूरी था. यह उल्लेखनीय है कि जैन साधुओं और अनुयायियों के लिए शाकाहारी होना अनिवार्य है.
⦁ पाइथागोरस सभी प्रकार के जीवों का सम्मान करते थे. उन्होंने कहा था, “जब तक मनुष्य दूसरे जीवों का संहारक बना रहेगा, वह कभी भी स्वास्थ्य या शांति को नहीं जान पाएगा. जब तक मनुष्य जानवरों का वध करते रहेंगे, वे एक-दूसरे को मार डालेंगे. वास्तव में, जो हत्या और पीड़ा का बीज बोता है, वह आनंद और प्रेम नहीं पा सकता.”
⦁ एक और उल्लेखनीय बात यह है कि पाइथागोरस महिलाओं को सीखने का समान अवसर देते थे. वह कहते थे की महिलाओं को दर्शन शास्त्र भी सीखना चाहिए. यह बातें भी जैन विचारों से भी मेल खाती है. इतिहास और वर्तमान साक्षी है कि जैन धर्म में महिलाओं को शिक्षा पाने का समान अधिकार प्राचीन काल से ही दिया गया है. जैन मिथक के अनुसार प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव ने गणित और लिपि का ज्ञान सबसे पहले अपनी पुत्रियां ब्राह्मी और सुंदरी को दिया था.
⦁ जैन दर्शन में गणित का अपना एक विशेष महत्व है. जैन गणित यह एक प्रगत विषय है और जैन परंपरा में कई सारे महान गणिति हो चुके है, जिन्हे गणित के इतिहास में विश्व भर में जाना जाता है. पाइथागोरस भी एक महान गणिति थे. यह समानता विशेष उल्लेख करने जैसी है.
पाइथागोरस पर जैन दर्शन का प्रभाव
⦁ साधे सफेद सूती कपडे यह पाइथागोरिअन्स का ड्रेस कोड था. पाइथागोरिअन्स और जैन साधुओं में यह और एक समानता दिखाई देती है.
⦁ एक और आश्चर्यजनक बात यह है कि पाइथागोरस को अपने पिछले कई जन्म याद थे. यह बात जन्म और पुनर्जन्म की जैन अवधारणा से समानता रखती है. आपको मालुम ही होगा की भगवान महावीर को भी अपने पिछले जन्म याद थे. जैन दर्शन में इसे जातिस्मरण कहा जाता है.
इन सब समानताओं से पता चलता है कि पाइथागोरस जैन दर्शन और जैन धर्म की अवधारणाओं से प्रभावित थे. कोई एक-दो समानताएं होती थी तो अलग बात थी, लेकिन यहां तो कई सारी समानताएं हैं. चूंकि प्राचीन भारतीयों और यूनानियों के बीच संबंध थे, पाइथागोरस और वर्धमान महावीर समकालीन थे, इसलिए संभव है कि पाइथागोरस वर्धमान महावीर के दर्शन से परिचित और प्रभावित थे.
या फिर यह Great men think alike (महापुरुष एक जैसा सोचते हैं) वाली बात है?
पाइथागोरस पर जैन दर्शन का प्रभाव
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