आध्यात्मिक ऊर्जा से भरे थे आचार्य विद्यासागर

नरेंद्र मोदी

प्रधान मंत्री, भारत

आचार्य विद्यासागर

जीवन में हम बहुत कम ऐसे लोगों से मिलते हैं, जिनके निकट जाते ही मन-मस्तिष्क एक सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है. ऐसे व्यक्तियों का स्नेह, उनका आशीर्वाद, हमारी बहुत बड़ी पूंजी होती है.

संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज मेरे लिए ऐसे ही थे. उनके समीप अलौकिक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता था. आचार्य विद्यासागर जी जैसे संतों को देखकर ये अनुभव होता था कैसे भारत में अध्यात्म किसी अमर और अजस्र जलधारा के समान अविरल प्रवाहित होकर समाज का मंगल करता रहता है.

आज मुझे, उनसे हुई मुलाकातें, उनसे हुआ संवाद, सब बार-बार याद आ रहा है. पिछले साल नवंबर में छत्तीसगढ़ में डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी जैन मंदिर में उनके दर्शन करने जाना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात थी. तब मुझे जरा भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि आचार्य जी से मेरी यह आखिरी मुलाकात होगी.

वह पल मेरे लिए अविस्मरणीय बन गया है. इस दौरान उन्होंने काफी देर तक मुझसे बातें कीं. उन्होंने पितातुल्य भाव से मेरा ख्याल रखा और देश सेवा में किये जा रहे प्रयासों के लिए मुझे आशीर्वाद भी दिया. देश के विकास और विश्व मंच पर भारत को मिल रहे सम्मान पर उन्होंने प्रसन्नता भी व्यक्त की थी. अपने कार्यों की चर्चा करते हुए वह काफी उत्साहित थे. इस दौरान उनकी सौम्य दृष्टि और दिव्य मुस्कान प्रेरित करने वाली थी. उनका आशीर्वाद आनंद से भर देने वाला था, जो हमारे अंतर्मन के साथ-साथ पूरे वातावरण में उनकी दिव्य उपस्थिति का अहसास करा रहा था.

उनका जाना उस अद्भुत मार्गदर्शक को खोने के समान है, जिन्होंने मेरा और अनगिनत लोगों का मार्ग निरंतर प्रशस्त किया है.

भारतवर्ष की विशेषता

भारतवर्ष की ये विशेषता रही है कि यहां की पावन धरती ने निरंतर ऐसी महान विभूतियों को जन्म दिया है, जिन्होंने लोगों को दिशा दिखाने के साथ-साथ समाज को भी बेहतर बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है. संतों और समाज सुधार की इसी महान परंपरा में संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी का प्रमुख स्थान है. उन्होंने वर्तमान के साथ ही भविष्य के लिए भी एक नयी राह दिखाई है. उनका संपूर्ण जीवन आध्यात्मिक प्रेरणा से भरा रहा. उनके जीवन का हर अध्याय, अद्भुत ज्ञान, असीम करुणा और मानवता के उत्थान के लिए अटूट प्रतिबद्धता से सुशोभित है.

संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज जी सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन और सम्यक चरित्र की त्रिवेणी थे. उनके व्यक्तित्व की सबसे विशेष बात ये थी कि उनका सम्यक दर्शन जितना आत्मबोध के लिए था, उतना ही सशक्त उनका लोक बोध भी था. उनका सम्यक ज्ञान जितना धर्म को लेकर था, उतना ही उनका चिंतन लोक विज्ञान के लिए भी रहता था.

करुणा, सेवा और तपस्या से परिपूर्ण आचार्य जी का जीवन भगवान महावीर के आदर्शों का प्रतीक रहा, उनका जीवन, जैन धर्म की मूल भावना का सबसे बड़ा उदाहरण रहा. उन्होंने जीवन भर अपने काम और अपनी दीक्षा से इन सिद्धांतों का संरक्षण किया.

हर व्यक्ति के लिए उनका प्रेम, ये बताता है कि जैन धर्म में ‘जीवन’ का महत्व क्या है. उन्होंने सत्यनिष्ठा के साथ अपनी पूरी आयु तक ये सीख दी कि विचारों, शब्दों और कर्मों की पवित्रता कितनी बड़ी होती है. उन्होंने हमेशा जीवन के सरल होने पर जोर दिया. आचार्य जी जैसे व्यक्तित्वों के कारण ही, आज पूरी दुनिया को जैन धर्म और भगवान महावीर के जीवन से जुड़ने की प्रेरणा मिलती है.

वो जैन समुदाय के साथ ही अन्य विभिन्न समुदायों के भी बड़े प्रेरणास्रोत रहे. विभिन्न पंथों, परंपराओं और क्षेत्रों के लोगों को उनका सानिध्य मिला, विशेष रूप से युवाओं में आध्यात्मिक जागृति के लिए उन्होंने अथक प्रयास किया.

शिक्षा का क्षेत्र

शिक्षा का क्षेत्र उनके हृदय के बहुत करीब रहा है. बचपन में सामान्य विद्याधर से लेकर आचार्य विद्यासागर जी बनने तक की उनकी यात्रा ज्ञान प्राप्ति और उस ज्ञान से पूरे समाज को प्रकाशित करने की उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दिखाती है. उनका दृढ़ विश्वास था कि शिक्षा ही एक न्यायपूर्ण और प्रबुद्ध समाज का आधार है. उन्होंने लोगों को सशक्त बनाने और जीवन के लक्ष्यों को पाने के लिए ज्ञान को सर्वोपरि बताया. सच्चे ज्ञान के मार्ग के रूप में स्वाध्याय और आत्म-जागरूकता के महत्त्व पर उनका विशेष जोर था. इसके साथ ही उन्होंने अपने अनुयायियों से निरंतर सीखने और आध्यात्मिक विकास के लिए निरंतर प्रयास करने का भी आग्रह किया था.

संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज की इच्छा थी कि हमारे युवाओं को ऐसी शिक्षा मिले, जो हमारे सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित हो. वह अक्सर कहा करते थे कि चूंकि हम अपने अतीत के ज्ञान से दूर हो गये हैं, इसलिए वर्तमान में हम अनेक बड़ी चुनौतियों से जूझ रहे हैं. अतीत के ज्ञान में वो आज की अनेक चुनौतियों का समाधान देखते थे. जैसे जल संकट को लेकर वो भारत के प्राचीन ज्ञान से अनेक समाधान सुझाते थे.

उनका यह भी विश्वास था कि शिक्षा वही है, जो स्किल डेवलपमेंट और इनोवेशन पर अपना ध्यान केंद्रित करे.

कैदियों की भलाई

आचार्य जी ने कैदियों की भलाई के लिए भी विभिन्न जेलों में काफी कार्य किया था. कितने ही कैदियों ने आचार्य जी के सहयोग से हथकरघा का प्रशिक्षण लिया. कैदियों में उनका इतना सम्मान था कि कई कैदी रिहाई के बाद अपने परिवार से भी पहले आचार्य विद्यासागर जी से मिलने जाते थे.

भाषाई विविधता, स्वास्थ्य सेवा के बारे में आचार्य विद्यासागर जी के विचार

संत शिरोमणि आचार्य जी को भारत देश की भाषाई विविधता पर बहुत गर्व था. इसलिए वह हमेशा युवाओं को स्थानीय भाषाएं सीखने के लिए प्रोत्साहित करते थे. उन्होंने स्वयं भी संस्कृत, प्राकृत और हिंदी में कई सारी रचनाएं की हैं. एक संत के रूप में वे शिखर तक पहुंचने के बाद भी जिस प्रकार जमीन से जुड़े रहे, ये उनकी महान रचना ‘मूक माटी’ में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है. इतना ही नहीं, वे अपने कार्यों से वंचितों की आवाज भी बने.

संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज जी के योगदान से स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में भी बड़े परिवर्तन हुए हैं. उन्होंने उन क्षेत्रों में विशेष प्रयास किया, जहां उन्हें ज्यादा कमी दिखाई पड़ी. स्वास्थ्य को लेकर उनका दृष्टिकोण बहुत व्यापक था. उन्होंने शारीरिक स्वास्थ्य को आध्यात्मिक चेतना के साथ जोड़ने पर बल दिया, ताकि लोग शारीरिक और मानसिक रूप, दोनों से स्वस्थ रह सकें.

राष्ट्रीय हित पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह

मैं विशेष रूप से आने वाली पीढ़ियों से यह आग्रह करूंगा कि वे राष्ट्र निर्माण के प्रति संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की प्रतिबद्धता के बारे में व्यापक अध्ययन करें. वे हमेशा लोगों से किसी भी पक्षपातपूर्ण विचार से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया करते थे. वे मतदान के प्रबल समर्थकों में से एक थे और मानते थे कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति है. उन्होंने हमेशा स्वस्थ और स्वच्छ राजनीति की पैरवी की. उनका कहना था- ‘लोकनीति लोभसंग्रह नहीं, बल्कि लोकसंग्रह है’, इसलिए नीतियों का निर्माण निजी स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि लोगों के कल्याण के लिए होना चाहिए.

आचार्य जी का गहरा विश्वास था कि एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण उसके नागरिकों के कर्तव्य भाव के साथ ही अपने परिवार, अपने समाज और देश के प्रति गहरी प्रतिबद्धता की नींव पर होता है. उन्होंने लोगों को सदैव ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और आत्मनिर्भरता जैसे गुणों को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया. ये गुण एक न्यायपूर्ण, करुणामयी और समृद्ध समाज के लिए आवश्यक हैं. आज जब हम विकसित भारत के निर्माण की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं तो कर्तव्यों की भावना और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है.

पर्यावरण के बारे में आचार्य विद्यासागर जी के विचार

ऐसे कालखंड में जब दुनियाभर में पर्यावरण पर कई तरह के संकट मंडरा रहे हैं, तब संत शिरोमणि आचार्य जी का मार्गदर्शन हमारे बहुत काम आने वाला है. उन्होंने एक ऐसी जीवनशैली अपनाने का आह्वान किया, जो प्रकृति को होने वाले नुकसान को कम करने में सहायक हो. यही तो ‘मिशन लाइफ’ है जिसका आह्वान आज भारत ने वैश्विक मंच पर किया है. इसी तरह उन्होंने हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि को सर्वोच्च महत्त्व दिया. उन्होंने कृषि में आधुनिक टेक्नोलॉजी अपनाने पर भी बल दिया. मुझे विश्वास है कि वो नमो ड्रोन दीदी अभियान की सफलता से बहुत खुश होते.

संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी, देशवासियों के हृदय और मन-मस्तिष्क में सदैव जीवंत रहेंगे. आचार्य जी के संदेश उन्हें सदैव प्रेरित और आलोकित करते रहेंगे. उनकी अविस्मरणीय स्मृति का सम्मान करते हुए हम उनके मूल्यों को मूर्त रूप देने के लिए प्रतिबद्ध हैं. यह ना सिर्फ उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि होगी, बल्कि उनके बताए रास्ते पर चलकर राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त होगा.

यह भी पढिये

जैन हो फिर भी दुखी हो?

राजपूत और जैन धर्म

भारत क्यों है इस देश का नाम?

पाइथागोरस पर जैन दर्शन का प्रभाव | Pythagoras

Join Jain Mission WhatsApp Group

Jains & Jainism (Online Jain Magazine)

TheyWon
English Short Stories & Articles

न्यूमरॉलॉजी हिंदी

Please follow and like us:
Pin Share

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *