
विशाल रातडीया जैन
फोन: 9921961850, 8329408115
खतरे में है जैन समाज का भविष्य……
आज जैन जनसंख्या लगभग 50,00,000 है जो कि भारत के पूरे जनसंख्या के 0.37% है जबकि देश के कर भुगतान में हम जैन लोग 24% भागीदार है. जिससे भारत आज महासत्ता बनने के सपने देख रहा है वह सब हमारे समाज के कर भुगतान के बदौलत ही है. भले ही हम जैन समाज के लोगों को सरकार से कुछ मिले या ना मिले पर हम जैन लोग नानाविध प्रकार के कर भरते रहेंगे, अपनी जेबे खाली करके सरकारी तिजोरी भरते रहेगें. लॉकडाउन में सरकार ने इतना कुछ बांटा लेकिन जैन समाज के गरीब वर्ग को कुछ भी नहीं मिला क्योंकि बांटते वक्त सरकार सिर्फ वोट बॅन्क देखती है, जिस समाज/धर्म की वोट बॅन्क ज्यादा उनकी ही बातें सुनी जाती है, उनकी दखल ली जाती है और उन पर अमल किया जाता है.
जैन समाज को सरकार से एक भी रुपए की मदद नहीं मिलती फिर भी हमारा समाज सरकार को देने में लगा हुआ है. “घर का बच्चा घंटी पिसे और आटा जाए पड़ोसी को” यह कहावत हम जैन लोग सिद्ध करते हैं. घर का बच्चा बेचारा घंटी को चाटता रहे यही आज जैन समाज की वस्तुस्थिति है. बिजली बिल, पानी बिल, सोसाइटी मेंटेनेंस इत्यादि सब कर भुगतान करने पर भी हमारे जैन समाज के लिए कुछ करने की नौबत आए तो सरकार हाथ खड़े कर देती है.
सब वोट बॅन्क का खेल है
जैसे कि विमल सागर जी म सा ने कहा था कि सरकार सब वोट बॅन्क का खेल है, लोकसभा राज्यसभा में उन्हीं की बातें सुनी जाती है जिनका तगड़ा वोटबैंक हो. आज हमारे तीर्थ भी सुरक्षित नहीं है, इतर समाज उस पर कब्जा करने में लगे हुए हैं और हम लोग श्वेतांबर- दिगंबर, मंदिरमार्गी- स्थानकवासी करने में लगे हुए. जब हमारे तीर्थ ही हाथ से निकल जाएंगे तो इन सब संप्रदायवादी बातों का क्या महत्व रह जाएगा? जब घर में आग लगी हो तो गुलदान को बचाना नहीं सोचते सबसे पहले घर वालों की जान बचाने के बारे में सोचते हैं. आज हमारी अपनी धार्मिक धरोहर बचाने के लिए भी मोर्चे निकालने पड़ रहे हैं, धरणा देना पड़ रहा है ये तो यही बात हुई अपनी संपत्ति गिरवी रखकर खुद कर्जा मांगने चले.
जिनशासन के नाम की रोटी खाकर …..
आज भारत में लगभग 16000 गौशालाएं हैं, इसमें से 12000 गौशालाए जैन समाज संभालता है जैसे गौ माता की सुरक्षा का ठेका सिर्फ जैनियों ने ले रखा है और सरकार भी गांधारी बन बैठी है. कोई भी नैसर्गिक व मानवनिर्मित आपत्ती आ जाए तो सबसे पहले मदद के लिए जैन समाज को न्योता भेजा जाएगा, नहीं देने पर प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सब में भर भर के लिखा जाएगा, देने के लिए भी जबरदस्ती की जाएगी, ऐसा किसी भी सरकार का जैन समाज के प्रति रवैया है. समाज के साधु संत भी ऐसे वक्त में बड़े दयावान बन जाते हैं और मंदिर, स्थानक के पदाधिकारियों को उनकी मदद करने के लिए व्याख्यान देते हैं. जैन समाज के गरीब वर्ग को मदद करने की प्रेरणा तो कभी नहीं करते उल्टा इतर धर्मियों की मदद करने का मार्गदर्शन करते हैं क्योंकि वहां मदद करने पर प्रसिद्धि मिलती है, अखबार में नाम आता है, फोटो छपते हैं.
समाज के कुछ साधु संत भी जिनशासन के नाम की रोटी खाकर सरकार के गुण गाने में लगे हुए हैं, उनकी वफादारी महावीर से नहीं बल्कि सरकार से हो गई हैं. सरकार पर कविता लिखने, गीत बनाने में लगे हुए हैं इसलिए संतो को भी अपना स्वयं का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है क्योंकि कुत्ता भी अपनी रोटी के प्रति वफादार होता है कही हम कुत्ते से भी गए गुजरे तो नहीं है. साथ ही साथ साधु संतों को अपने प्रवचनों के विषय एवम दिशा बदलने की आवश्यकता है. साधर्मिक भक्ति, अपने तीर्थों की सुरक्षा, जैन समाज के गरीब वर्ग की उन्नति आदि विषयों पर व्याख्यान देकर जिन शासन को सुरक्षित करने की आवश्यकता है.
जैन समाज का भविष्य
जैन समाज का धनिक वर्ग भी ऐसी मानसिकता का है की उन्हें दान देने के लिए अनाथ आश्रम, इतर सामाजिक संस्थाएं दिखती है लेकिन अपने ही साधर्मिक गरीब नहीं दिखते. इतर संस्थाओं में जाकर लाखों का दान करेंगे लेकिन किसी साधर्मिक को 5000-10000 देने में भी कतराएंगे. स्थानक, मंदिर के जो पदाधिकारी है वो भी मदद करते वक्त दस जगह पूछताछ करते हैं, कितने कागजाद मंगाते हैं, कोई भी स्वाभिमानी गरीब जैन अपनी इज्जत कम कर कोई भी मदद लेनी नहीं चाहेगा लेकिन यह पदाधिकारी लोग स्वयं के पूर्वाग्रह, अहंकार के अधीन होकर सामने वाले को लाचार बना देते हैं. मदद तो 4000-5000 की करेंगे लेकिन 10 जगह फोटो अपलोड करके लेने वाले की इज्जत का कचरा करेंगे, तो ऐसे पदाधिकारियों को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है नहीं तो समाज ही ऐसे लोगों से उनकी खुर्चिया छीन ले क्योंकि चाणक्य ने कहा है अयोग्य व्यक्ति के हाथ में सत्ता और संपत्ति चली जाए तो उस समाज का पतन ही होगा.
जैन युवतियों की मानसिकता
आज जैन समाज की लड़कियां इतर समाज के लड़कों के साथ भाग कर शादी कर रही है और समाज के अच्छे खासे पढ़े-लिखे लड़के कुंवारे बैठे हैं. लड़की और उनके मां-बाप दोनों को ‘बेहतरीन’ रिश्ता चाहिए फिर भले ही लड़की की उम्र बढ़ती क्यों ना रहे? इस बेहतरीन के चक्कर में ‘बेहतर’ हाथ से निकल रहा है लेकिन लड़की के मां-बाप को इसकी कोई चिंता नहीं है और पछतावा तो बिल्कुल भी नहीं. आज 30-32 साल लड़की की उम्र हो गई है फिर भी मां-बाप और अच्छे रिश्ते देखने में लगे और यदि शादी 32 की उम्र में करेंगे तो संतान कब होगी? कब माता-पिता बनने का सुख पाएंगे? कब दादा-दादी बनेंगे?

आज की लड़कियों को बॉलीवुड फिल्म्स, टीवी सीरियल्स, वेब सीरीज में दिखने वाले स्मार्ट, गुड लुकिंग, हैंडसम, सिक्स पॅक एब्स, जीरो फिगर वाले लड़के चाहिए फिर भले ही वह लड़का शराब-सिगारेट पीने वाला हो, उसकी दो-चार गर्लफ्रेंड हो, लड़का वर्जिन ना हो, शादी के पहले सेक्स किया हुआ हो, इतर धर्म का ही फिर भी लड़कियों को वो सब चल जाता है. अच्छे घर के, नशा न करने वाले, लड़कियों की इज्जत करने वाले, मां-बाप की जिम्मेदारी उठाने वाले लड़के अब कहा लड़कियों को भाते है? अच्छे चरित्र वाले लड़के बेचारे कुंवारे बैठे हैं. जब से रिश्ते पैसा, रुतबा, सत्ता, सौंदर्य के पैमाने पर बनने लगे हैं और अंतर्भुत गुणों को नजरअंदाज किया जा रहा है तभी से विवाह जैसी व्यवस्था धराशाई होने लगी है, इसीलिए आजकल दो चार महीनों में छुट्टा छेड़ा हो जाता है, यही हमारे जैन समाज की आज की नग्न वास्तविकता है.
एक ही संतान बस?
जिनकी शादी हुई है वह भी एक ही संतान में सीमित होते जा रहे हैं, सरकार ने कहा हम दो हमारे दो लेकिन हम बुद्धिजीवी जैन लोगों ने तो हम दो हमारे एक कोई अपना नारा बना लिया है. आज जैन समाज का जन्म दर 1.2% है, जन्म दर कम इसलिए जैन समाज की आबादी कम, आबादी कम मतलब सरकार के लिए वोट बैंक कम, वोट बैंक कम इसलिए जैन समाज के मांगों की, उनके तकलीफों की दखल नहीं ली जाती यह अभी हमने शिखरजी बचाव के समस्या में भी देखा है. तीर्थंकर परमात्मा ने हमें इंद्रियों पर नियंत्रण रखने के लिए कहा है, वासना पर नियंत्रण रखने के लिए कहा है लेकीन जनसंख्या पर नियंत्रण रखने के लिए नही कहा है. इसलिए विमल सागर जी म. सा., देवनंदी जी म सा भी जैन जनसंख्या बढ़ाने पर जोर दे रहे है. जैन समाज को इस विषय पर चिंतन की आवश्यकता है.
बडी मछली, छोटी मछली को हमेशा खा जाती है…
जैन समाज के अमीर वर्ग को वर्तमान परिवेश में नया मंदिर, तेरापंथ भवन, आयंबिल खाता या फिर स्थानकवासीयों में साधु-संतों की संस्थाएं बनाना बेकार है, इसमें कुछ भी अर्थ नहीं है क्यों कि अब अगर बनाओगे तो मान लो दूसरों के लिए ही बना रहे हो क्योंकि अब जो भी वास्तु बनाओगे उस की उम्र 10, 20 या ज्यादा से ज्यादा 25 साल बस इससे अधिक नहीं क्योंकि जैन समाज ही नहीं रहेगा, उसकी अस्मिता ही नहीं रहेगी, शक्ति ही नहीं रहेगी, वर्चस्व ही नहीं रहेगा, बल ही नहीं रहेगा, दूसरों का वजूद बढ़ जाएगा और ‘मत्स्य गलागल’ का सिद्धांत यहां पर लागू होगा मतलब बड़ी मछली, छोटी मछली को हमेशा खा जाती है इसलिए इतर धर्मीय लोग, सरकार हमारे तीर्थों को पचा लेंगे जैसे नेमिनाथ भगवान को बालाजी के नाम से पचा लिया.
जैन समाज के बड़े-बड़े उद्योगपति, बुद्धिजीवी लोग भी अपना अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए सरकार को अच्छा कहने में लगे हुए हैं उल्टा सच्चाई तो यह है कि सरकार तो नगरवधू है वह कभी किसी एक की नहीं होती, इतिहास गवाह है कि जिसका वोटबैंक ज्यादा सरकार उसी की होती है इसलिए अब जैन समाज को सरकार को अच्छा कहना बंद कर उसका असली चेहरा देखने की जरूरत है. यहा समाज के लोग भूखे मर रहे हैं और यह उद्योगपति सरकारी तिजोरियां भरने में लगे हैं.
इसलिए अगर जैन समाज अपना भविष्य सुरक्षित देखना चाहता है, अपनी भावी पीढ़ी को फलते-फूलते हुए देखना चाहता है तो समाज को गहरे चिंतन मनन की आवश्यकता है. सबसे पहले तो जैन समाज में विवाह अधिक हो उपरांत जन्म दर बढ़े, हमारी बढ़ती जनसंख्या हमारे समाज का वोट बैंक स्ट्रॉन्ग करेगी जिससे हम इतर धर्म के सामने खड़े हो पाएंगे, उनसे दो दो हाथ कर पायेंगे, अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को बचा पाएंगे, सरकार के सामने अपनी तकलीफ रख पाएंगे, अपने काम सरकार से निकलवा पाएंगे और सबसे महत्त्वपूर्ण बात चैन से जी पाएंगे.
जैन समाज का भविष्य

यह भी पढिये …..
सम्प्रदायवाद ले डूबेगा जैन समाज को!
जैन समाज की घटती हुयी आबादी ….
दिगंबर जैन समाज आत्मपरीक्षण करें ……..
दलित और आदिवासियों को जैन धर्म अपनाना चाहिए!
Jain Mission (English)
They Won हिंदी
हिंदी कहानियां व लेख
They Won
English Short Stories & Articles