
महावीर सांगलीकर
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भारत में जल्द ही जनगणना होने वाली है. इस जनगणना में लोगों के धर्म और जातियों की गणना होनेवाली है. इससे पता चलेगा की भारत में किस धर्म के अनुयायियों की संख्या कितनी है और किस जाती के कितने लोग है.
कुछ जैन लोग ऐसा प्रचार कर रहे हैं कि जैनियों को जाति के कॉलम में भी जैन लिखना चाहिए. यह एक निहायत ही गलत बात है. कॉमन सेन्स की बात यह है कि जिधर जो पूछा गया है वही लिखना चाहिए. उससे भी बडी बात यह है कि जैन कोई जाति नहीं है, बल्कि एक धर्म है. जैन को जाती बताना या बनाना मूर्खता तो है ही, साथ ही यह घोर अज्ञान है.
जाति के कॉलम में जैनियों को क्या लिखना चाहिए ?
सबसे पहले जैनियों को समझ लेना चाहिए कि जैन समाज में कई सारी जातियां हैं. जैसे ओसवाल, पोरवाल, अग्रवाल, खंडेलवाल, हुमड, सैतवाल, कासार, चतुर्थ, पंचम, सराक आदि. एक सर्वे के अनुसार ऐसी जैन जातियों की संख्या 120 से अधिक है.
जैनियों को जाति के कॉलम में अपनी जो कुछ जाति है वही लिखनी चाहिए.
जैनियों को इस बात को भी समझ लेना चाहिए कि दिगंबर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी, तेरापंथी आदि जातियां नहीं हैं बल्कि संप्रदाय हैं. इसलिए जाति के कॉलम में संप्रदाय ना लिखे.
इसी प्रकार जाति के कॉलम में गोत्र या सरनेम भी नहीं लिखना चाहिए, क्यों कि गोत्र या सरनेम जाति नहीं है.
जैन जातियों की सूचि | List of Jain Castes
जातीय जनगणना का जैनियों का क्या फायदा है?
जातीय जनगणना में जैन समाज की जातियों की नोंद होने से जैन समाज के कई फायदे हो जाएंगे. देखा गया है जैन लोग, यहां तक कि उनके तथाकथित अखिल भारतीय लीडर्स भी जैन समाज के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते, क्यों कि समाज के बारे में उनका ज्ञान सिमित है. जातीय जनगणना में जैन जातियों की नोंद होने से इन नेताओं को और सरकार को भी पता चलेगा की भारत के किस राज्य में जैन धर्म पालन करनेवाले समूह कौनसे है, और उनकी संख्या क्या है.
राजपूत, जाट, गुर्जर, पटेल आदि कई बडी जातियों में जैन धर्म का पालन करने वाले, और अपना धर्म जैन बताने वाले लोग बडी संख्या में है. जातीय जनगणना से यह भी पता चलेगा कि ऐसे लोगों की संख्या कितनी है.
जैन धर्म केवल बनियों का धर्म नहीं है. भारत में कई ओबीसी, एस सी, एसटी, आदिवासी समूह हैं जो जैन धर्म का पालन करते है. यह सारी जानकारी प्राप्त होने से केंद्र और राज्य सरकारों को जैन समाज के व्यापक और सही स्वरुप मालुम हो जाएगा, और जैन समाज की ओर उपेक्षा से देखने की उनकी आदत बंद हो जायेगी. साथ ही जो जैनी ओबीसी, एस सी, एसटी, आदिवासी समाज से है, सरकार उनके लिए कुछ कर सकेगी.
जैन नेताओं को भी पता चल जाएगा कि उनका जैन समाज के बारे में ज्ञान कितना सीमित है.
लॉजिक और कॉमन सेन्स की कमी
बिना कोई लॉजिक या कॉमन सेन्स के कुछ जैनी जाति के कॉलम में जैन लिखने का प्रचार कर रहें है. उनको लगता है की ऐसा करने से जैनियों की सही संख्या का पता चलेगा. इन लोगो को इस बात को याद रखना चाहिए कि जैनियों की संख्या का पता धर्म के कॉलम में जैन लिखने से चलेगा, ना कि जाति के कॉलम में जैन लिखने से.
अगर जैनी जाति के कॉलम में अपनी जाति जैन लिखते हैं तो यह जैन समाज के लिए एक नुकसानदेह बात बन जाएगी. क्यों की इससे सरकार के पास जैन समाज की सही जानकारी नहीं पहुंचेगी. उससे भी बड़ा खतरा यह है कि जैन धर्म एक धर्म न रहकर एक जाति बन जायेगी. फिर हिंदुत्ववादी आसानी से सिद्ध कर देंगे की जैन एक जाति है, न कि एक धर्म!
तो कॉमन सेन्स की बात यह है कि जैनियों को जिस कॉलम में जो पूछा है वही लिखना चाहिए. धर्म के कॉलम धर्म और जाति कॉलम में जाति. जाति के कॉलम में जैन हरगिज न लिखें.
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सहृदय सआदर प्रणाम आपने जीस गहराई से जैन धर्म पर अध्ययन करवाया वास्तव में सराहनीय है। जैन एक आचरण है ना की कोई जाति कोई भी व्यक्ति जैन धर्म का आचरण स्विकार सकता है। मेरी जाति बीसा ओसवाल है और मेरा धर्म जैन है। बहुत अच्छी तरह समझ में आया कि आपकों कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। बहुत-बहुत धन्यवाद
आभार ।