Conversion: जैन मंदिरों का परिवर्तन क्यों हुआ?

महावीर सांगलीकर

jainway@gmail.com

जैन मंदिरों का परिवर्तन और हमारे बिछडे हुए भाई…… जैन मंदिरों का परिवर्तन क्यों हुआ? जानिये इस लेख में ….

कई प्रसिद्ध और प्राचिन हिन्दू मदिरों के बारे में हम लोग बोलते है कि अमुक मंदिर पहले जैन मंदिर था/ पहले ‘हमारा’ मंदिर था. इसमें उस मंदिर का पहले जैन मंदिर होना तो सच बात है, लेकिन उसे ‘हमारा मंदिर था’ कहना गलत बात है.

ज्यादातर सच तो यह है कि वह मंदिर उस समय भी उन्ही लोगों का था, जिनका आज है. फर्क सिर्फ इतना है कि वे लोग उस समय जैन धर्म के अनुयायी थे. उन्होंने जैन धर्म छोड़ दिया और अपने ही मंदिर से जैन मूर्तियां निकालकर वहां हिन्दू मूर्तियों की स्थापना की. इसका मतलब यही है कि लोग वही है, धर्म बदल गया.

पूरे भारत में ऐसे कई समाज घटक है जो पहले जैन थे, लेकिन अब जैन नहीं हैं. हम उन मंदिरों की और मूर्तियों की बातें तो करते हैं, लेकिन जो लोग जैन धर्म छोडकर चले गये हैं, उनसे हमें कुछ लेना-देना नहीं हैं. इसी कारण हम उन लोगों को वापस जैन धर्म में लाने की बातें नहीं करते. हमारी रूचि केवल मंदिर, मूर्तियां और उनके ओनरशीप में है!

मान लीजिये कि अगर कल ऐसा कोई पुराना मंदिर ‘हमारे’ (यानि जैनियों के) हातों में सौप दिया जाए, तो क्या वह सबके लिए खुला रहेगा? और इस बात की क्या गॅरंटी है कि वह मंदिर दिगंबर-श्वेताम्बर विवाद से दूर रहेगा? इस बात की क्या गॅरंटी है हम लोग जीर्णोद्धार के नाम पर उस मंदिर का प्राचिन रूप नष्ट न कर देंगे?

तेलंगना के हनुमानकोंडा (जिला वरंगल) का पद्माक्षि गुट्टा मंदिर (फोटो: आदित्य माधव)

जैन मंदिरों का परिवर्तन क्यों हुआ?

ढेर सारे जैन मंदिरों का हिंदू मंदिरो में परिवर्तन हुआ इसके पीछे के असली कारण क्या है इसपर हम कब चर्चा करेंगे? देखा जाता है की ऐसे परिवर्तन ज्यादातर उन प्रदेशों में हुए जहां जैन समाज का अस्तित्व समाप्त हो गया था. अगर वहां जैन समाज ही नहीं बचा तो मंदिर कैसे बचते? वहां जैन समाज नहीं बचा इसके दो मुख्य कारण है. पहला कारण यह है कि जैन समाज ने जैन धर्म छोड़ दिया, वह शैव या वैष्णव बन गए और साथ ही उन्होंने जैन मंदिरों का भी परिवर्तन किया. दूसरा कारण यह है किसी कारण जैन समाज को वह एरिया छोड़ देना पड़ा. फिर खाली पड़े इन मंदिरों का परिवर्तन हो गया.

सोचने की बात यह भी है कि जैन लोगों ने जैन धर्म छोड़ने की और जैन मंदिरों के परिवर्तन की घटनाएं ज्यादातर दक्षिण भारत और पूर्व भारत में क्यों घटी?

भारत की कई जातियों के इतिहास का अध्ययन करने पर पता चलता है कि यह लोग प्राचीन काल से मध्यकाल तक जैन धर्म का पालन करते थे. लेकिन आजकल यह लोग जैन नहीं हैं. फिर भी उनके कुछ रीतिरिवाज ऐसे है जिनसे उनका पहले जैन होने की पुष्टि होती है. दक्षिण भारत की गौडा, गौंडर, बंट, नाडर आदि बडी बडी जातियां और दूसरी भी कई छोटी छोटी जातियां पहले जैन धर्म के अनुयायी थी.

तो बातें यह करनी चाहिए कि बिछडे हुए लोगों को वापस कैसे लाया जाय. उन्होंने जैन धर्म छोडा था वह राजीखुशी नहीं बल्कि मजबूरी और जबरदस्ती के कारण. और उससे भी बडा कारण था प्रस्थापित जैन समाज द्वारा, जैन भट्टारकों और मुनियों द्वारा ही उनको जैन समाज से बाहर कर देना.

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अब हमारा कर्तव्य बनता है कि बिछडे लोगों को वापस बुलाया जाए. इससे उनका भी भला हो जायेगा और जैन समाज का भी. उनमें से कई लोग वापस जैन धर्म की और आना भी चाहते है.

मैं इसका एक बडा उदहारण देना चाहूंगा. वह है महाराष्ट्र के मातंग समाज का. इस समाज के लोगों को जब यह पता लगा कि प्राचीन काल में वह जैन धर्म के अनुयायी थे, समाज कई लोग जैन धर्म की ओर आकर्षित हो गए और उन्होंने जैन धर्म का फिर से पालन करना शुरू कर दिया. इस समाज के एक विद्वान श्री. विठ्ठल साठे जी के नेतृत्व में ‘घरवापसी’ का एक बड़ा काम महाराष्ट्र में चल रहा है. पिछले दो-तीन सालों में इस समाज के हजारों लोग शाकाहारी बन चुके हैं और सैंकड़ो परिवारों ने जैन धर्म अपनाया है.

ऐसी घरवापसी अन्य कई समाजों के लोग भी जरूर कर सकते है.

यह काम प्रस्थापित जैन समाज की मदद लिए बिना भी हो सकता है. लेकिन जैन समाज इस काम में अपना सहयोग दें तो इस काम को बड़ी गति मिल सकती है.

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4 thoughts on “Conversion: जैन मंदिरों का परिवर्तन क्यों हुआ?

  1. जिन लोगों का धर्म परिवर्तित कर दिया गया था तो अब अतिशीघ्र उनके घर वापसी का प्रयास किया जाना चाहिए
    सराक और दक्षिण भारत में गरीब जैन लोगों को भी मुख्य
    धारा में शामिल करने का भरपूर प्रयास करना चाहिए।
    जैन मंदिरों और जैन स्थानकों का फंड प्रयोग करना चाहिए।
    एक तरफ मंदिर लूट रहे हैं, मंदिरों में चोरी हो रही हैं और जैनेतर समाज द्वारा जैन मंदिरों पर जबरन कब्जा किया जा रहा है और दूसरी तरफ अपने साधारमिक भाई और सराक जैन गरीबी की रेखा से भी नीचे का जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
    इस तरह अपने जैन मंदिरों और जैन स्थानकों में रखी धन
    सम्पदा अपनों पर खर्च करने में कोई बुराई नहीं है।
    इससे जैन समाज की संख्या भी बढ़ेगी और जैन समाज
    सुदरढ भी होगा।
    हम सिक्ख समुदाय से सीख ले सकते हैं जिन्होंने गुरूद्वारों में रखी धन सम्पदा को बेचकर गरीबों के लिए अस्पताल खोले दिये हैं।

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