जैन धर्म का पतन कैसे हुआ?

महावीर सांगलीकर

jainway@gmail.com

अक्सर यह माना जाता है कि जैन धर्म का पतन शैव और वैष्णव धर्म के बलशाली होने से, राजाश्रय बंद होने के कारण हो गया. यह आरोप किया जाता है कि आदि शंकराचार्य, रामानुजन आदि शैव और वैष्णव आचार्यों ने जैन आचार्यों को वाद-विवाद में पराजित किया या बल से जैनियों का धर्मपरिवर्तन किया, जैन धर्म को नष्ट कर दिया, जैन मंदिरों को शैव या वैष्णव मंदिरों में परिवर्तित किया गया.

लेकिन हम जब टाईम लाईन देखते हैं, तब यह सब आरोप झूठे साबित हो जाते हैं.

वास्तव में जैन धर्म 13वी सदी तक, और कई स्थानों पर 16 वी सदी तक भारत के कई प्रदेशों में एक मुख्य धर्म था. भारतीय समाज में जैन धर्म का पालन करने वालों की संख्या काफी अच्छी थी. देश के कई भागों में, विशेषकर दक्षिण और पश्चिम भारत में यह एक जन धर्म बन चूका था. भारतीय समाज के सभी स्तरों में जैन धर्म के अनुयायी पाए जाते थे. इसके कई ऐतिहासिक प्रमाण हैं. 

जैन धर्मानुयायी राज्यकर्ता

तेरहवी सदी तक, और कई स्थानों पर 16 वी सदी तक भारत के कई प्रदेशों के राज्यकर्ता जैन धर्मानुयायी थे, और कई अन्य राज्यकर्ताओं के राज्यों में भी जैन धर्मानुयायीयों का बडा प्रभाव था. उदाहरण के लिये मै यहां कुछ राजघरानों, राज्यकर्ताओं के नाम और उनका शासन काल दे रहां हूं:

चालुक्य राजवंश: शासनकाल: सन 940 से 1244. इस राजवंश ने गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश के बडे हिस्से पर राज किया. इस राजघराने पर जैन धर्म का बड़ा प्रभाव था. इसी राजघराने में सम्राट कुमारपाल हुआ, जो जैन धर्म  का अनुयायी था (शासनकाल सन1143 से 1172). सम्राट कुमारपाल प्रसिद्ध जैन आचार्य हेमचन्द्र सूरी जी का शिष्य था. कुमारपाल ने कई जैन मंदिर बनवाये, जिसमें शत्रुंजय का आदिनाथ मंदिर, तारंगा का अजितनाथ मंदिर, अनहिलपट्टण के मंदिर प्रसिद्ध हैं.  इस राजघराने में और भी कई जैन राजा हुए. 

शिलाहार राजवंश: शासनकाल: सन 940 से 1215. इनकी तीन शाखाएं थी, जिन्होंने उत्तर कोंकण, दक्षिण कोंकण और दक्षिण महाराष्ट्र पर राज किया. इनपर जैन धर्म का बडा प्रभाव था. शिलाहार राजवंश के कई राजा, रानियां और सेनापति जैन धर्म के अनुयायी थे. इस राजवंश में गण्डरादित्य, गोंक, भोज (दूसरा) आदि कई जैन राजा और निंबरस जैसे प्रसिद्ध सेनापति  हुए.  राजा गंडरादित्य प्रसिद्ध जैन आचार्य माघनंदी जी का शिष्य था, जब कि राजा विजयादित्य आचार्य माणिक्यनंदी जी का शिष्य था. दक्षिण महाराष्ट्र और दक्षिण कोंकण में जैन धर्म फलाने-फूलने में यह राजवंश एक बडा कारण है. 

जैन धर्मानुयायी राज्यकर्ता

देवगिरि के यादव: शासनकाल: सन 1187 से 1317. इस राजवंश ने महाराष्ट्र, उत्तर कर्नाटक और मध्यप्रदेश के बडे एरिया पर राज किया. इस राजवंश का पहला राजा दृढप्रहार था, जो जैन आचार्य जिनप्रभसूरी जी का शिष्य और तीर्थंकर चन्द्रप्रभु का भक्त था.

देवगिरि के यादव राजघराने में आगे भी कई जैन राजा हुये. इन राजाओं की रानियां विशेष कर कर्णाटक के जैन राजाओं की कन्याएं होती थी. यादवों के सैन्य अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारियों में जैन धर्म के अनुयायी बड़ी संख्या में थे.

यादवों की राजधानी महाराष्ट्र के औरंगाबाद के निकट देवगिरि में थी. देवगिरि के किले पर एक बड़ा जैन मंदिर था जिसे अब भारत माता मंदिर के नाम से जाना जाता है.

यादवों ने जिस एरिया पर राज किया, वहां उस काल के जैन मंदिर, जैन अवशेष और शिलालेख बड़ी संख्या में पाए जाते हैं.  

होयसल राजवंश: इस राजवंश की शुरुआत सल नामक राजा से हो गयी, जो जैन आचार्य सुदत्त जी का शिष्य था. इस राजवंश ने सन से लेकर तक राज्य किया. इस राजवंश के कई राजा जैन धर्मानुयायी थे.

विजयनगर साम्राज्य: यह एक शक्तिशाली साम्राज्य था, जिसने दक्षिण भारत के पुरे हिस्से पर राज्य किया. (सन 1336 से 1565). इस साम्राज्य के राजा हरिहर (दुसरा) का मुख्य सेनापति और महादण्डनायक इरुगप्पा जैन धर्मानुयायी था. इस साम्राज्य में जैन धर्म और समाज का बडा प्रभाव था.

चौटा राजवंश: यह एक जैन राजवंश था जिसने तटीय कर्णाटक पर 12 वी सदी से 18वी सदी तक राज किया. इसी राजवंश में अब्बक्का रानी हुयी, जिसने पुर्तगालियों को समुद्री और जमीनी लडाईयों में कई बार हराया.

इस काल में दूसरे भी कई राजवंश हुए, जिनके शासन काल में जैन धर्म फलता फूलता रहा. 

क्या आदि शंकराचार्य ने जैन धर्म को नष्ट किया?

अब उठता है कि क्या आदि शंकराचार्य ने जैन धर्म को नष्ट किया?

जिन आदि शंकराचार्य पर जैन धर्म नष्ट करने का आरोप किया जाता है, उनका काल देखिये. उनका जन्म सन 700 में हुआ और मृत्यु सन 750 में हो गयी. उपर मैंने जिन राजवंशों के बारे में लिखा है उन सबका समय आदी शंकराचार्य की  मृत्यु के काफी बाद का है. इसका मतलब ऐसा होता है कि आदि शंकराचार्य पर जो आरोप लगाया जाता है वह झूठा है. लेकिन अगर यह आरोप सही है तो इसका मतलब यह होता है कि आदि शंकराचार्य की मृत्यु के बाद जैन धर्म फिर से जीवित हो गया और फैलाने-फूलने लगा. लेकिन ऐसा होने का कोई सबूत नहीं है.   

फिर जैन धर्म का पतन कब और क्यों हुआ?  

फोटो: चेतन काशिनाथ राठोड

घटनाओं की टाईम लाईन देखने पर स्पष्ट रूप से पता चलता है कि जैन धर्म का पतन 13वी सदी के बाद शुरू हुआ. यह वह काल है  जब दिल्ली पर मुस्लिम सुलतानों की सत्ता स्थापित हो गयी (सन 1202),  जब अल्लाउद्दीन खिलजी ने देवगिरि पर आक्रमण कर के यादवों का राज्य नष्ट किया (सन 1317), जब दक्षिण के पांच अलग-अलग हिस्सों पर पांच सुलतानों  की सत्ता स्थापन हो गयी (सन  1527), जब दक्षिण के पांचों सुलतानों ने मिल कर विजयनगर साम्राज्य नष्ट किया (सन 1565), और जब भारत में  मुगलों की सत्ता स्थापित हो गयी (सन  1526).

इस काल में हजारों जैन और हिन्दू मंदिरों को नष्ट किया गया, गैर-मुस्लिमों पर जिझिया टॅक्स थोपा गया, कई प्रकार की पाबंदिया लगायी गयी.  इस काल में लाखों जैनियों और हिन्दुओं को जबरन मुस्लिम बनाया गया. इन सब कारणों से और हमेशा होने वाले आक्रमणों के कारण जैन धर्म धीरे धीरे कम होते चला गया.  

मेहरौली (दिल्ली)के क़ुतुब मीनार को 27 जैन और हिन्दू मंदिरों को तोडकर बनाया गया था 

यह सबकुछ  केवल दक्षिण भारत या दिल्ली आदि प्रदेशों में ही नहीं हुआ, बल्कि भारत के लगभग सभी प्रदेशों में हुआ. जहां भी जैन और हिन्दू मंदिर थे और जहां मुस्लिम आक्रामक पहुंचे, वहां उन्होंने ज्यादातर मंदिरों को तहस-नहस कर दिया.

पूर्व भारत में सराक क्षेत्रों में जैन मंदिरों के जो अवशेष दिखाई देते हैं, वह भी मुस्लिम आक्रामकों ने नष्ट किये हुए मंदिर हैं.        

टिपू सुल्तान की सेना ने वायनाड (केरल) के अनंतनाथ जैन मंदिर को नष्ट कर दिया. उस मंदिर के अवशेष

जैन धर्म का पतन

विचार करने योग्य बात यह है कि आजकल कई जगह जमीन में खुदाई आदि के समय जो जैन मूर्तियां मिलती रहती हैं  वह सब जमीन में कैसे चली गयी? इसका उत्तर यही है कि जैनियों ने उन मूर्तियों को मुस्लिम आक्रामकों से बचने के लिए खुद ही जमीं में छुपा दिया!  

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने अपनी पुस्तक ‘प्रतिक्रांति’ में  लिखा है, ‘भारत से बौद्ध धर्म ब्राम्हणों या हिन्दुओं के कारण नहीं बल्कि मुस्लिम आक्रामकों के कारण नष्ट हुआ है’. डॉ. बाबासाहब की यह बात जैन धर्म पर भी लागू होती है. अंतर केवल इतना ही है कि बौद्ध धर्म की तरह जैन धर्म पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ. इसके कुछ अलग कारण हैं, जिनके बारे में अलग से लिखूंगा.  

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14 thoughts on “जैन धर्म का पतन कैसे हुआ?

  1. If reason of decline is Muslim rulers invasion, then, why Hinduism and Sikkhism did not delcine, and only Jainism or Buddhism declined?
    The analaysis is not completely true, there are many factors, which are not highlighted in this article. I am writing a 1000 page book on Decline of Jainism with real reasons, according to place, timeline and situations. It will take one more year to complete. Will post you.

  2. Good Information, many Jains were butchered by Christians in Goa, many Jain saints were killed by some Hindu kings etc

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