महावीर सांगलीकर
jainway@gmail.com
जैन हो फिर भी दुखी हो?
एक सच्चा जैन दुखी नहीं हो सकता. उसे किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं हो सकती. उसे किसी भी प्रकार की चिंतायें नहीं सताती. उसके सारे काम आसानी से हो जाते है. अगर कोई छोटी-मोटी समस्या या चिंता हो भी तो वह उसको सहजता से झेल लेता है, डिप्रेशन में नहीं जाता है, अपने आप पर और दूसरो पर गुस्सा नहीं निकालता है. .
फिर भी हम देखते हैं की कुछ जैन व्यक्ति, जैन परिवार दुखी और पीडित रहते है. ऐसे परिवारों में ढेर सारी समस्याएं रहती है. घरेलु झगड़े, मनमुटाव, आर्थिक तंगी, गरीबी आदि ऐसे परिवारों की विशेषताएं रहती है.
दूसरी ओर ढेर सारे ऐसे जैन परिवार, जैन व्यक्ति होते हैं, जो मानो कि स्वर्ग में रहते हो. ऐसे जैन परिवार के पास कोई समस्या भटकती तक नहीं. फिर भी कोई समस्या आएं भी तो उसको आसानी से हल किया जाता है. इन परिवारों और व्यक्तियों के पास धन और संपत्ति के कोई कमी नहीं होती, मतलब ऐसे परिवार अमीर होते है. अमीर ना भी हो, तो भी ऐसे परिवारों अभावों में नहीं जीते हैं.
इन दोनों प्रकार के परिवार, व्यक्ति धर्म से जैन है, फिर भी उनकी परिस्थितियों में इतना अंतर क्यों?
जैन हो फिर भी दुखी हो?
दुखी जैन व्यक्ति और परिवार
जैन होकर भी दुखी होने का मुख्य कारण एक ही है. वह यह है कि दुखी जैन व्यक्ति और परिवार जैन धर्म के प्रति वफादार नहीं है. वह जन्म से जैन जरूर होंगे, लेकिन उन्होंने जैन धर्म के मुलभुत सिद्धांतों को अपने जीवन में चर्या में लाया नहीं हैं. इनको लगता है कि हमारी समस्याओं का जैन धर्म नहीं बल्कि दूसरा कोई धर्म, दूसरा कोई भगवान है. फिर जय जिनेन्द्र, जय महावीर आदि बोलना बंद कर देते हैं. अपने ही धर्म के लोगों को दूसरे धर्मों का पाठ पढाने लगते हैं. ऐसे लोग फिर दर दर भटकते रहते हैं.
रुकिये, यहां मैं यह नहीं कह रहा हूं की आपको रोज जैन मंदिर जाना चाहिए, सूर्यास्त से पहले भोजन कर लेना चाहिए, उपवास और कर्मकांड करने चाहिए, किसी चीज का त्याग करना चाहिये आदि. यह सब ऊपरी क्रियाएं, बाह्य तप है.
वास्तव में तुम्हें यह सोचना चाहिए कि मानसिक और व्यावहारिक तौर पर तुम कितने जैन हो? नीचे दिए गए मुद्दों पर विचार करो:
जैन हो फिर भी दुखी हो?
अहिंसा
क्या तुम अहिंसा का पालन ठीक तरह करते हो? तुम्हारी अहिंसा केवल शाकाहार तक तो सीमित नहीं है ना? अहिंसा का सही अर्थ मन में सबके लिए करुणा भाव है. क्या तुम्हारे मन में करुणा भाव है? क्या तुम्हारे मन में सभी जीवों के प्रति प्रेम और करुणा है? क्या किसी प्राणी को तुमने कभी गले लगाया है? या फिर किसी प्राणी, कीटक आदि को देखते ही उसे मारने दौडते हो? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारी जीवदया गाय-भैंस आदि दुधारू जानवरों तक ही सीमित है?
और क्या तुम अपने कटु वचनों से और कृत्यों लोगों का दिल दुखाया करते हो? और क्या तुमने किसी मनुष्य को अपने गले लगाया है? या किसी के स्पर्श से (चाहे वह मनुष्य हो या जानवर) तुम्हे नफरत है?
अनेकांतवाद
क्या तुम्हें दुसरों की सुनने की आदत है? या सिर्फ अपनी ही रट लगाये रहते हो? क्या तुम्हे दुसरे धर्मों, सम्प्रदायों और लोगों के बारे में समता भाव है? या तुम उनका द्वेष करते हो? क्या तुम सहजीवन (जिओ और जीने दो) में विश्वास रखते हो? या दुसरों का अस्तित्व तुमसे सहा नहीं जाता?
दुसरे धर्मों, सम्प्रदायों और लोगों के दोष निकालना, उनकी निंदा करते रहना यह तुम्हारी आदत तो नहीं? और अपने आप को श्रेष्ठ दिखाने के लिए तुम दुसरों को नीचा दिखते हो? याद रखो, तुमने अपनी श्रेष्ठता उसी समय खो दी, जब तुमने अपने धर्म से वफादारी छोड दी!
चॅरिटी
क्या तुम्हें देने की आदत है? जो कुछ तुम्हारे पास है उसका एक हिस्सा तुम सामाजिक, धार्मिक, शिक्षा संबधी कार्यों के लिए देते हो? जरुरत मंदों की मदद करते हो?
और क्या तुम किसी काम में अपनी सेवाएं देते हो? क्या तुम अन्नदान, औषध दान, ज्ञान दान आदि करते रहते हो? और क्या यह देना दिल से, आनंद से होता है, जबरदस्ती से नहीं?
या तुम देना जानते ही नहीं हो, सिर्फ लेना ही जानते हो? फ्री में जो कुछ मिले उसके पीछे भागते हो? लोगों से मांगते रहते हो? जो उधार में लिया उसे वापस नहीं करते हो?
साधर्मी वात्सल्य
क्या तुम्हें सभी जैनियों से अपनापन है? उनसे दोस्ती है? उनसे पारिवारिक संबध हैं? क्या जरुरत पड़ने पर तुम उनकी मदद करते हो? चाहे वह किसी भी संप्रदाय, भाषाभाषी, जाति के हो?
या जो जैनी तुम्हारे संप्रदाय, भाषाभाषी, जाति के नहीं उनसे तुम नफरत करते हो? उनपर जलते हो? उनको अपने से हलका समझते हो?
और जैन समाज की कोई व्यक्ति राह भटकती है तो क्या तुम उसे सही रस्ते पर लाने की कोशिश करते हो? या फिर उसे और बदनाम करते रहते हो?
कषाय
कहीं तुम तीव्र कषायों से ग्रस्त तो नहीं हो? क्या तुम्हें अहंकार तो नहीं? कहीं तुम्हे छल-कपट करने की आदत तो नहीं? और कहीं तुम बात-बात पर गुस्सा तो नहीं करते? कहीं तुम लोभी तो नहीं? और लोभवश दूसरों की चीजें, अधिकार आदि हडप तो नहीं लेते?
तुम्हारा अहंकार तो इसीसे दिखता है की तुम किसी का रिस्पेक्ट नहीं करते, और ना ही तुम्हारे मुंह से कभी थॅन्क यू, सॉरी, हाय, कैसे हो, कॉन्ग्रॅट्स, शाबास, बढिया जैसे शब्द निकलते है, और ना ही तुम सम्भाषण में पहल करते हो. अहंकार के कारण तुम ना किसी से क्षमा मांग सकते हो, ना किसी को क्षमा कर सकते हो.
जैन हो फिर भी दुखी हो?
++++
आशा है, मेरे कहने का मतलब आप समझ गए होंगे. आप भाग्यवान है अगर आपका जन्म एक जैन परिवार में हुआ है, जैन समाज में हुआ है. लेकिन अगर फिर भी आप अगर दुखी है तो आपको ऊपर दिए गए मुद्दों पर विचार करना चाहिए और अपने माइंडसेट में और व्यवहार में उचित बदलाव लाने चाहिये.
यह भी पढिये
पाइथागोरस पर जैन दर्शन का प्रभाव
जैन धर्म का पतन क्यों और कैसे हुआ?
साध्वी सिद्धाली श्री | अमेरिका की पहली जैन साध्वी
दक्षिण भारत में धार्मिक संघर्ष: क्या यह जैन-हिन्दू संघर्ष था?
Jains & Jainism (Online Jain Magazine)
TheyWon
English Short Stories & Articles
5 thoughts on “जैन हो फिर भी दुखी हो?”