महावीर सांगलीकर
अक्सर देखा जाता है कि जैन समाज के बहुत-से लोग और साधु पशुहिंसा के विरोध में बड़े जोर-शोर से बोलते हैं. मंचों से भाषण होते हैं, रैलियां निकलती हैं, पोस्टर लगते हैं और सोशल मीडिया पर भी लंबी-लंबी पोस्ट लिखी जाती हैं. यह अच्छी बात है, क्योंकि अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धांत है. लेकिन एक सवाल मन में बार-बार उठता है…. मानव हिंसा पर जैन लोग कब बोलेंगे?
युद्ध और हिंसा
आज दुनिया में कई देशों के बीच युद्ध चल रहें हैं. लाखों-करोड़ों लोग मारे जा रहे हैं. स्त्रियां विधवा हो रही हैं, बच्चे अनाथ हो रहे हैं. करोड़ों लोग घायल होकर जीवन भर के लिए अपंग बन रहे हैं. पूरा-का-पूरा समाज उजड़ रहा है.
कई सैनिक दुश्मन देशों की महिलाओं पर बलात्कार करते है, और निरपराध नागरिकों को भी मार देते हैं.
युद्ध में लाखों बिल्डिंगे, लाखों घर, लाखों परिवार तबाह हो जाते हैं. लाखों करोडो लोगों को अपना देश छोड़कर दूसरे देशों में आश्रय लेना पड़ता है, और निर्वासित जीवन बिताना पड़ता है.
यह सब सबसे बड़ी हिंसा है.
लेकिन इस भयानक मानव हिंसा के खिलाफ जैन समाज की आवाज़ लगभग सुनाई नहीं देती. जो लोग सूक्ष्म जीवों की हत्या से व्यथित हो जाते हैं, वे मानव हत्या पर चुप क्यों रहते हैं? यह सवाल बहुत गम्भीर है.
और हैरानी की बात तो यह है कि कई जैन लोग युद्ध का विरोध करने के बजाय उसका समर्थन करते दिखाई देते हैं. उन्हें युद्ध का ज्वर चढ़ जाता है. वे इसे राष्ट्रभक्ति, शौर्य या शक्ति का प्रतीक मानने लगते हैं. यह सोच जैन दर्शन की आत्मा के बिल्कुल विपरीत है.
अगर अहिंसा केवल थाली और रसोई तक सीमित रह जाए, और युद्ध, हत्या व नरसंहार पर मौन साध लिया जाए, तो ऐसी अहिंसा खोखली बन जाती है. मुझे तो यह मानसिकता विचित्र लगती है. यह केवल अज्ञान नहीं, बल्कि एक तरह का मनोविकार भी है, जिसमें इंसान छोटी-छोटी बातों पर संवेदनशील और बड़ी-बड़ी हिंसाओं पर संवेदनहीन हो जाता है. यह जैनियों की छोटी सोच नतिजा है.
समाज में हिंसा
सिर्फ युद्ध ही नहीं, समाज में रोज़ जो हिंसा हो रही है, उस पर भी जैन समाज की चुप्पी खटकती है. हत्या, बलात्कार, स्त्रियों और बच्चों पर अत्याचार, दलितों को जिन्दा जलाया जाना, मानव तस्करी, सांप्रदायिक दंगे, शोषण ये सब मानव हिंसा के ही रूप हैं. इन मुद्दों पर बहुत कम जैन लोग खुलकर बोलते हैं.
धर्म अगर इंसान को अन्याय के खिलाफ खड़ा न करे, तो वह केवल कर्मकांड बनकर रह जाता है.
अहिंसा का अर्थ यह नहीं कि सिर्फ जानवरों को न मारो. अहिंसा का असली अर्थ है — किसी भी इंसान पर होने वाले अन्याय और हिंसा के खिलाफ खड़ा होना. भगवान महावीर की अहिंसा डरपोक चुप्पी नहीं थी. वह साहसिक नैतिकता थी. वह सत्ता, युद्ध और हिंसा के खिलाफ एक स्पष्ट संदेश थी.
आज ज़रूरत है कि जैन समाज अपनी सोच पर ईमानदारी से विचार करे. क्या हम अहिंसा को केवल धार्मिक पहचान बना रहे हैं, या सच में उसे जीवन में उतार रहे हैं?
अगर हम मानव की पीड़ा से नहीं पिघलते, अगर हमें विधवाओं, अनाथ बच्चों और युद्ध-पीड़ितों का दर्द नहीं दिखता, तो हमारी अहिंसा अधूरी है.
अब समय आ गया है कि जैन लोग सिर्फ पशुहिंसा ही नहीं, बल्कि मानव हिंसा के खिलाफ भी साफ और साहसिक रूप से बोलें. वरना अहिंसा का नाम लेना भी एक दिखावा बनकर रह जाएगा.

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संभावित मुख्य कारण:
1. विदेशी देशों के बीच व्याप्त हिंसा (युद्ध) पर बोलना शायद उन्हें कहीं व्यर्थ प्रतीत होता| परिवार के बीच चर्चाओं में उसका समर्थन तो कभी नहीं करते| सामाजिक आलोचना इसलिए नहीं करते “हमारे बोलने से क्या ही होगा”|
2. राजनीतिक कारण भी अहम है| उदाहरण: इजरायल vs फिलिस्तीन का युद्ध | यहां धर्म एक प्रमुख विषय है| जैन अधिकांश हिंदू समाज और राजनैतिक पार्टियों को नाराज नहीं करना चाहता है|
3. देश के भीतर हो रही संवेदनशील सामाजिक हिंसा पर वह प्राय मुखर होकर तब तक कुछ नहीं बोलता जब तक crime की दस्तक उसके स्वयं के घर या समाज तक नहीं पहुंचे| यहां शायद भय एक कारण हो सकता है| अगर कोई पुलिस या IPS या Bureaucrat/वकील जैन है| तो वह अवश्य स्वयं का कार्य कर्मठता से करेंगे| लेकिन हां, प्राय आम जैन नागरिक शांत रहते हैं| यहां भी राजनीति एक प्रमुख कारण है| जैन ऐसी स्तिथि में diplomatic रहते हैं परंतु सब जैन ऐसे कतई नहीं है|
4. ऐसे व्यवहार के पीछे राजनीति एक बड़ा प्रमुख कारण है|
It is foolish to expect from a small community of jains to speak about war .
Further it is not the jain principle to compel others to do anything.
Yes jains can preach about ahinsa to others who want to follow Jainism.
Jsins are wrongly wasting there times in saving animals also.
Jains need to preach about Jainism not about saving of animals.
And those who follow Jainism they will lesser these slowly as per own wishes .
Jains goal is to preach about moksh the permananent abode of infinitive bliss .
And those who want to obtain it should follow samyak Darshan gyan charitr .
Waise bhi aaj jain population itnee kam hai to bolna hi hai to feminism hypocrisy par bolo aur jansankhya badhao