नए ज़माने में नए जैन धर्म की ज़रूरत

महावीर सांगलीकर

jainway@gmail.com

हर दौर का अपना एक धर्मबोध होता है. जो बातें हजारों साल पहले लोगों को रास्ता दिखाती थीं, जरूरी नहीं कि वे आज के इंसान की हर समस्या का जवाब भी दे सकें. जैन धर्म ने अपने समय में अहिंसा, आत्मसंयम और विवेक जैसे गहरे विचार दिए, लेकिन आज सवाल यह है कि क्या हम उस सोच को सच में जी रहे हैं या सिर्फ उसके नियम ढो रहे हैं. आज जैन धर्म ज्यादा तर उपवास, खाने-पीने की पाबंदियों, मंदिर, प्रवचन और मुनि-भक्ति तक सीमित होता जा रहा है, जबकि इंसान की असली परेशानियां कहीं और हैं.

आज का इंसान युद्ध, हिंसा, अन्याय, बेरोजगारी, पर्यावरण संकट और मानसिक तनाव से जूझ रहा है. ऐसे समय में धर्म का काम डर पैदा करना या मरने के बाद का सपना दिखाना नहीं, बल्कि जीने का तरीका सिखाना होना चाहिए. इसलिए नए युग में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या जैन धर्म को भी अपने रूप, भाषा और प्राथमिकताओं पर दोबारा सोचने की जरूरत नहीं है. नए जैन धर्म की बात किसी परंपरा को तोड़ने की नहीं, बल्कि उसे आज के इंसान और समाज के लिए फिर से उपयोगी बनाने की कोशिश है.

खाने पीने, उपवास और कर्मकांड से आगे सोचने की ज़रूरत

आज जैन धर्म का मतलब बहुत हद तक खाने-पीने की पाबंदियों, लंबे उपवासों और कुछ खास नियमों तक सीमित हो गया है. कई बार ऐसा लगता है कि धर्म एक तरह की प्रतियोगिता बन गया है कि कौन ज़्यादा त्याग कर सकता है. लेकिन असली सवाल यह है कि क्या इन सब से इंसान ज़्यादा अच्छा, ज़्यादा समझदार और ज़्यादा संवेदनशील बन रहा है या नहीं. अगर कोई बहुत धार्मिक दिखता है लेकिन दूसरों के दुख से उसे फर्क ही नहीं पड़ता, तो उस धर्म का क्या मतलब है. नए जैन धर्म में यह साफ होना चाहिए कि नियम तभी काम के हैं जब वे इंसान को बेहतर बनाएं.

धर्म का मतलब सिर्फ मोक्ष नहीं, बेहतर इंसान बनना भी है

आज धर्म को अक्सर इस तरह समझा जाता है कि बस आत्मा का कल्याण हो जाए और मरने के बाद मोक्ष मिल जाए. लेकिन ज़िंदगी सिर्फ मरने के बाद की तैयारी के लिए नहीं है. इस जीवन में भी बहुत कुछ करने और सुधारने की ज़रूरत है. अगर कोई व्यक्ति रोज़ पूजा करता है लेकिन समाज में हो रहे अन्याय पर चुप रहता है, तो उसकी धार्मिकता अधूरी है. जैन धर्म को यह सिखाना चाहिए कि अच्छा इंसान बनना, ईमानदारी से जीना और समाज के लिए खड़ा होना भी उतना ही ज़रूरी है जितना आत्मिक शांति पाना.

स्वर्ग, नरक और मोक्ष की बातें करते करते हम अक्सर आज की ज़िंदगी को भूल जाते हैं. लोग अच्छे काम इसलिए करते हैं कि कहीं पाप न लग जाए या आगे जाकर सज़ा न मिले. लेकिन सच्ची समझ यह है कि अच्छा काम इसलिए करना चाहिए क्योंकि वही सही है. नए जैन धर्म में ज़ोर इस बात पर होना चाहिए कि हम अभी कैसे जी रहे हैं, दूसरों के साथ कैसा बर्ताव कर रहे हैं और अपने समय और संसाधनों का इस्तेमाल कैसे कर रहे हैं. धर्म डर से नहीं, समझ से चलना चाहिए.

जैन धर्म सब इंसानों के लिए होना चाहिए

आज जैन धर्म को देखकर ऐसा लगता है जैसे यह सिर्फ जैन पैदा हुए लोगों के लिए है. अगर कोई बाहर का व्यक्ति जैन सोच को अपनाना चाहे, तो उसके लिए रास्ता आसान नहीं होता. नया जैन धर्म इस सोच को बदले कि धर्म जन्म से नहीं, सोच से होता है. जो भी इंसान अहिंसा, सच्चाई और समझदारी में विश्वास रखता है, वह जैन सोच से जुड़ सकता है. धर्म किसी एक समाज की जागीर नहीं होना चाहिए.

बहुत से लोग खुद को सिर्फ इसलिए बड़ा धार्मिक मान लेते हैं क्योंकि वे जैन परिवार में पैदा हुए हैं. लेकिन धर्म कोई खानदानी चीज़ नहीं है. यह रोज़ के सोच और व्यवहार से बनता है. साथ ही, कुछ लोग और संस्थाएं खुद को जैन धर्म का मालिक समझने लगती हैं. नया जैन धर्म इस तरह के ठेकेदारी रवैये से दूरी बनाए. धर्म सबका है, किसी एक की जागीर नहीं.

इंसान सबसे पहले, बाकी सब बाद में

जैन समाज जानवरों के प्रति तो बहुत संवेदनशील है, लेकिन जब इंसानों पर ज़ुल्म होता है, तब अक्सर चुप्पी रहती है. युद्ध, दंगे, मानव तस्करी, भूख, बेरोज़गारी और अन्याय जैसे मुद्दों पर जैन समाज की आवाज़ बहुत कम सुनाई देती है. यह एक बड़ी कमी है. नए जैन धर्म में यह साफ होना चाहिए कि इंसान की जान, इज़्ज़त और आज़ादी सबसे ज़्यादा अहम है. अहिंसा का मतलब सिर्फ किसी जीव को न मारना नहीं, बल्कि किसी इंसान को नुकसान पहुंचाने वाली हर व्यवस्था का विरोध करना भी है.

अंधभक्ति से बाहर निकलना ज़रूरी है

चाहे कोई मुनि हो, साधु हो या नेता, किसी की भी अंधी पूजा ठीक नहीं है. सवाल पूछना, सोचने की आज़ादी रखना और ज़रूरत पड़ने पर असहमति जताना बहुत ज़रूरी है. महावीर ने भी यही सिखाया था कि खुद अनुभव करो और समझो. अगर भक्ति सोचने की ताकत ही छीन ले, तो वह भक्ति नहीं बल्कि गुलामी बन जाती है.

धार्मिक किताबों का सम्मान होना चाहिए, लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि उनमें लिखी हर बात आज के ज़माने में वैसी ही लागू हो. समय बदलता है, समाज बदलता है और समझ भी बदलती है. नए जैन धर्म में यह हिम्मत होनी चाहिए कि हम ग्रंथों को सवालों के साथ पढ़ें और ज़रूरत पड़े तो नई व्याख्या करें. धर्म को जड़ नहीं, ज़िंदा रखना ज़रूरी है.

आज के ज़माने के मुद्दों पर धर्म की राय होनी चाहिए

आज दुनिया पर्यावरण संकट, तकनीक के असर, लोकतंत्र और आज़ादी जैसे बड़े सवालों से जूझ रही है. धर्म अगर इन मुद्दों पर चुप रहता है, तो वह धीरे-धीरे बेकार हो जाता है. नया जैन धर्म विज्ञान से डरे नहीं, बल्कि उससे बातचीत करे. डर और पाप की भाषा छोड़कर जिम्मेदारी और करुणा की भाषा बोले.

नए जैन धर्म का मतलब कोई नया पंथ बनाना नहीं है. इसका मतलब है जैन सोच को फिर से ज़िंदा करना. ऐसा धर्म जो दिखावे से ज़्यादा इंसानियत पर ध्यान दे, जो डर नहीं बल्कि समझ सिखाए, और जो मरने के बाद की दुनिया से ज़्यादा इस ज़िंदगी को बेहतर बनाने की बात करे. अगर जैन धर्म को आगे भी ज़िंदा और काम का रहना है, तो उसे इंसान और इंसानियत के साथ खड़ा होना ही होगा.

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