महावीर सांगलीकर
कहते है कि जैन कुल में जन्म लेनेवाला व्यक्ति बड़ा भाग्यशाली होता है. लेकिन यह पूरा सच नहीं है.
मनुष्य जन्म नहीं बल्कि कर्म से महान बनता है. इसी प्रकार मनुष्य जन्म से नहीं बल्कि आचरण से जैन बनता है. इसलिए केवल जैन कुल में जन्म लिया इसलिए किसी व्यक्ति को भाग्यशाली मानना ठीक नहीं है. फिर भी ऐसा माना जाता है. इसके पीछे क्या कारण है? इसका उत्तर यह है कि जैन परिवार में जन्म लेनेवाले व्यक्ति पर जैन धर्म के अनुसार आचरण करने के संस्कार हो जाते हैं. इसलिए उस व्यक्ति को भाग्यशाली माना जाता है.
लेकिन कई सारे लोग हैं जो जैन कुल में लेकर भी जैन विचारों विपरीत आचरण करते हैं. इसके उल्टे कई सारे ऐसे भी लोग है जिनका जन्म अजैन कुल में होता है, फिर भी उनका आचरण जैन धर्म के अनुसार होता है.
क्या जैन कुल में जन्म लेकर भी जैन धर्म के विपरीत आचरण करनेवालों को भाग्यशाली माना जा सकता है?
अजैन कुल में जन्म लेकर…..
इतिहास साक्षी है कि जैन धर्म के कई महान और प्रसिद्ध आचार्य, मुनि, साध्वियां, श्रावक, श्राविकाएं किसी जैनी के घर पैदा नहीं हुए थे, बल्कि उन्होंने किसी अजैन परिवार में जन्म लिया था. भगवान महावीर के सारे गणधर, उनकी परंपरा के केवली, श्रुतकेवली आदि अजैन कुल में ही पैदा हुए थे.
अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु के बाद भी कई युगप्रवर्तक आचार्य हुये, जो अजैन कुल में जन्मे थे, और जिन्होंने जैन धर्म का देशव्यापी प्रचार किया.
आधुनिक काल में श्रीमद राजचंद्र, आचार्य विजयानंद सूरी, आचार्य आत्माराम महाराज, मुनि मायाराम, बुद्धिसागरसूरी, गणेश प्रसाद वर्णी, आचार्य विजय इंद्र दिन्न सूरी, आचार्य दौलतसागर, अमरमुनि, सुशिल मुनि, आचार्य विजय धर्मधुरन्दर सूरी, आचार्य योगीश, साध्वी सिद्धाली श्री, साध्वी अनुभूति जैसे कई महान हस्तियां हो गयी, जिन्होंने अजैन परिवारों में जन्म लिया लेकिन जैन धर्म अपनाकर जैन धर्म की महती प्रभावना की, प्रचार प्रसार किया. आप सबको इन आचार्यों, मुनियों और साध्वियों के बारे में जान लेना चाहिये, ताकि आपको इनके कार्य के बारे में पता चलें.
भाग्यशाली तो वह है जो कर्म से जैन होते हैं…
एक सच्चा जैन बनने के लिए जैन कुल में जन्म लेने की आवश्यकता नहीं है. दुनिया के किसी भी कुल में जन्म लेनेवाला व्यक्ति जैन धर्म अनुसार आचरण करने और अपनी उन्नति करने का अधिकारी होता है.
मेरा निरिक्षण है कि अजैन कुल में पैदा होकर जैन धर्म अपनाने वाले लोग जैन कुल में पैदा होनेवाले कई लोगों से बेहतर आचरण करते हैं. इतना ही नहीं, अजैन कुल में पैदा होकर जिन्होंने जैन दीक्षा ली और जैन आचार्य बन गए, उन्होंने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में बड़ा योगदान दिया है.
देखा जाता है कि जो लोग जैन कुल की बातें करते हैं उनमें से कई लोग कुल का मद करने लगते हैं और दूसरे कुलों को तुच्छ मानने लगते हैं.
भगवान महावीर ने कहा था, ‘अपने कुल, गोत्र, जाति आदि का मद करना कर्मबंध का कारण है’.
जैन कोई जाति नहीं है, इसलिए किसी को जन्म से जैन मानना एक गलत बात है. इस बात ध्यान में रखते हुये हमें ‘जन्म से नहीं बल्कि कर्म से जैन’ की बात पर जोर देना चाहिए. भाग्यशाली तो वह होता है जो कर्म से जैन होता हैं, ना कि जन्म से!
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