महावीर सांगलीकर
तुलनाडु के चौटा राजवंश की अब्बक्का रानी (1525-1570) ने सोलहवीं सदी में पुर्तगालियों को कई बार पराजित किया. पुर्तगालियों की सेना और नौसेना को एकसाथ हराने वाली चौटा रानी अब्बक्का का पराक्रम आश्चर्यचकित करने वाला है.
रानी अब्बक्का यूरोपीय उपनिवेशवादियों के खिलाफ लड़ने वाली पहली भारतीय थी. उसने पुर्तगालियों की राजनीतिक और व्यावसायिक महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगाया. अब्बक्का के कारण पुर्तगाली कर्नाटक में अपने पैर नहीं जमा सके.
तुलूनाडू का चौटा राजवंश
कर्नाटक और केरल के तुलु भाषी क्षेत्र को तुलुनाडु के नाम से जाना जाता है. तुलनाडु कर्नाटक में दक्षिण कॅनरा व उडपी जिले और केरल में कासरगोड जिले क्षेत्र के अंतर्गत आता हैं. चौटा राजवंश मध्यकाल के सबसे महत्वपूर्ण राजवंशों में से एक है. चौटा जैन धर्म के अनुयायी थे.
चौटा राजवंश ने सं 1160 से 1867 ईस्वी तक यानी 700 सालों तक इस क्षेत्र पर शासन किया. चौटा वंश के सत्ता में आने से पहले इस क्षेत्र पर होयसल वंश के राजा विष्णुवर्धन का शासन था. दरअसल, विष्णुवर्धन के शासन की स्थापना से पहले भी इस क्षेत्र पर चौटाओं के पूर्वजों का शासन था.
रानी अब्बक्का
इसी राजवंश में सोलहवीं सदी में रानी अब्बक्का सत्ता में आ गयी. रानी अब्बक्का चौटा राजा तिरूमलराया (तृतीय) की भांजी थी. तिरूमलराया ने उसे राजनीती, धनुर्विद्या, तलवारबाजी, घुडसवारी आदि का प्रशिक्षण उसके बचपन से ही दिया. तिरूमलराया की मृत्यु के बाद अब्बक्का चौटा राजवंश की प्रमुख बन गयी.
रानी अब्बक्का जब सत्ता में आयी, उसी काल में भारत के पश्चिमी तट पर पुर्तगालियों आगमन हो चुका था. पुर्तगाली वास्को डा गामा ने भारत जाने का समुद्री रास्ता ढूंढ लिया था. सन 1498 में भारत के समुद्री तट पर कालिकत पहुंच चूका था. तब से कई पुर्तगाली व्यापारी भारत पहुंचने लगे. पुर्तगाली अपने शक्तिशाली बेड़े के बल पर धीरे-धीरे पश्चिमी तट के समुद्री मार्गों पर नियंत्रण स्थापित कर रहें थे.
उस जमाने में मसाले, चावल, कपास, कपडे आदि चीजे दक्षिण भारत के पश्चिमी तट से ईरान और अरब देशों को निर्यात की जाती थी. पुर्तगालियों ने इस निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया. उन्होंने पश्चिमी तट के सभी राजाओं और व्यापारियों को सूचित किया कि वे इन सभी वस्तुओं को पुर्तगालियों को उनके द्वारा तय की गई कीमत पर बेच दें, पुर्तगाली खुद इन सभी वस्तुओं का निर्यात करेंगे. उनका इरादा निर्यात योग्य वस्तुओं को किसानों से गिरती कीमत पर खरीद कर उन्हें खाड़ी के देशों में भारी कीमत पर बेचने और भारी मुनाफा कमाने का था.
रानी अब्बक्का का साहस
इस प्रकार के प्रतिबंध किसानों और राज्य की संप्रभुता के लिए खतरनाक थे. इसलिए रानी अब्बक्का इन प्रतिबंधों का विरोध करते हुए कालीकत के राजा जामोरिन की मदद से मसालों और अन्य सामानों से लदे जहाज खाड़ी की ओर रवाना किये. रानी अब्बक्का की इस चाल से गुस्से में आकर पुर्तगालियों ने उस के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया. लेकिन पराक्रमी और साहसी अबक्का रानी ने पुर्तगालियों को अच्छा सबक सिखाया. उसे मालुम ही था की अपनी इस चाल के कारण पुर्तगाली राज्य पर आक्रमण करेंगे.
चौटा राज्य की राजधानी उल्लाल थी. यह एक बंदरगाह था. पुर्तगालियों ने इस बंदरगाह पर हमला कर दिया, लेकिन अब्बक्का के बेड़े ने पुर्तगाली जहाजों को घेर लिया और पुर्तगालियों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया. अब्बक्का के नौसैनिकों ने चार पुर्तगाली जहाजों को जब्त कर लिया. इस लड़ाई में केलाडी के राजा वेंकटप्पा नायक और कालीकट के राजा जामोरीन ने अब्बक्का की सहायता की.
रानी अब्बक्का का अतुलनीय पराक्रम
पुर्तगाली सन 1567 में पूरी तैयारी के साथ उल्लाल पर फिर से हमला किया. इस समय पुर्तगाली इतने तैयार थे कि पुर्तगाली जनरल जो पिक्सेटो और पुर्तगाली नौसेना के प्रमुख एडमिरल मस्करहॅन्स इन दोनों ने इस हमले में हिस्सा लिया. पुर्तगाली सैनिकों ने उल्लाल शहर पर कब्जा कर लिया. उन्होंने उल्लाल के घरों में आग लगा दी, मंदिरों को नष्ट कर दिया. जनरल जो पिक्सेटो ने स्वयं अपने सैनिकों के साथ अब्बक्का के महल में प्रवेश किया. लेकिन रानी अब्बक्का वहां से गुप्त मार्ग से पहले ही निकल चुकी थी.
रानी ने गुप्त मार्ग से निकल कर राजधानी के बाहर एक मस्जिद में शरण ली थी. उसी रात उसने अपने 200 चुने हुए सैनिकों के साथ उल्लाल में फिर से प्रवेश किया और पुर्तगालियों पर हमला किया. यह छापामार हमला इतना भीषण था कि उसमें पुर्तगाली जनरल जो पिक्सेटो और उसके 70 सैनिक मारे गए. कई जख्मी हो गये और कई भाग गए.
उसी समय उल्लाल में रानी अब्बक्का के 500 सैनिकों ने पुर्तुगाली नौसैनिकों पर हमला किया. इस हमले में एडमिरल मस्कर और अधिकांश सैनिक मारे गए.
एकही युद्ध में सेना के जनरल और एडमिरल के मारे जाने की शायद यह एकमात्र घटना है.
इस घटना के अगले ही साल रानी अब्बक्का ने 6,000 सैनिकों के साथ पुर्तगालियों के कब्जे वाले मेंगलोर किले पर हमला किया. इस बार पुर्तगालियों को किला छोडकर भागना पडा.
रानी अब्बक्का
कुछ दिनों बाद पुर्तगाली नौसेना उल्लाल के समुद्र में फिर से आ खडी हुयी. सही मौका देख कर पुर्तगाली नौसैनिक उल्लाल बंदरगाह पर आक्रमण करने वाले थे. लेकिन चालाक अब्बक्का ने इस बार भी पुर्तगालियों फजीहत की. रात के अंधेरे में अब्बक्का के नौसैनिक अपनी नावों से पुर्तगाली युद्धपोतों के पास पहुंचे. उन्होंने अचानक से उन युद्धपोतों आग के सैंकड़ो गोले फेंके. इससे पुर्तगाली युद्ध पोतों में आग लग गई और पुर्तगाली सैनिकों ने अपनी जान बचाने के लिए समुद्र में छलांगे लगाईं. उनको अबक्का के सैनिकों द्वारा पकडा गया. पुर्तगाली रिकॉर्ड के अनुसार इस हमले में दो पुर्तगाली युद्धपोतों को डुबो दिया गया और 200 नौसैनिक मारे गए.
अब्बक्का के यह सभी पराक्रम चकित करने वाले है. इन पराक्रमों चर्चाएं उस समय यूरोप, अरब जगत और ईरान में भी हो रही थी.
रानी अब्बक्का की सेना
अब्बक्का की सेना छोटी थी लेकिन जुझारू और प्रशिक्षित थी. उसके नौसैनिकों में मुख्य रूप से मुस्लिम और कोली समुदायों के सैनिक शामिल थे, जब कि जमीनी बलों में सभी समुदायों के सैनिक शामिल थे. यह सैनिक एक विशिष्ट प्रकार के तीरों का उपयोग करते थे जो आग उगलते थे. अबक्का की सेना के पास तोपखाना भी था.
रानी अब्बक्का यूरोपीय उपनिवेशवादियों के खिलाफ लड़ने वाली पहली भारतीय थी. उसने पुर्तगालियों की राजनीतिक और व्यावसायिक महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगाया. अब्बक्का के कारण पुर्तगाली कर्नाटक में अपने पैर नहीं जमा सके.
रानी अब्बक्का की रहन सहन और प्रजावत्सलाता
इटालियन यात्री पेत्रो देला वॅले ने रानी अब्बक्का की भेंट ली तब उसने पाया कि इस रानी की रहनसहन बहुत ही साधी थी.
अब्बक्का का कार्य केवल राज्य की रक्षा करने तक ही सीमित नहीं था. वह एक प्रजावत्सल रानी थी. उसने अपने राज्य में किसानों के उपयोग के लिए बांध बनवाएं. उसने कई सामाजिक कार्य भी किए. वह धार्मिक भी थी. वह जैन धर्म की अनुयायी थी और उसकी कुलदेवता सोमेश्वर का सोमनाथ था.
इस रानी के बारे में पहले ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं थी. लेकिन नए अनुसंधान के कारण उसके बारे में कई तथ्य सामने आ रहें हैं. उन्हें देखकर:
- भारतीय रक्षक दल ने खाड़ियों की सुरक्षा के लिए निर्मित पांच जहाजों में से पहले जहाज का नाम रानी अब्बक्का रखा है.
- कर्नाटक में अब हर वर्ष अब्बक्का उत्सव मनाया जाता है.
- अब्बक्का रानी के नाम से एक म्यूजियम भी शुरू किया गया है.
- तुलु भाषा के अध्ययन के लिए ‘रानी अब्बक्का तुलु अध्ययन केंद्र’ शुरू किया गया है.
- उल्लाल और बेंगलुरु में रानी अब्बक्का की मूर्तियां भी लगाई गयी हैं.
- इस रानी पर कई लेख और पुस्तकें भी लिखी जा चुकी हैं.
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