रावण : श्रमण संस्कृति का साधक और रक्षक

रावण : श्रमण संस्कृति का साधक और रक्षक

सोहन मेहता “क्रांति”

विश्वमार्तंड रावण : श्रमण संस्कृति का महानायक और गलत समझा गया युगपुरुष

चाहे जितनी गालियां दो उस युगनायक को, चाहे जितने हिकारत के बाण चलाओ उस तीन लोक के विजेता पर,
और चाहे जितना उसकी विद्वता के शिखर सुमेरु को जलाकर अपनी खीज व बौखलाहट शांत करने का प्रयत्न करो—यह सत्य कभी नकारा नहीं जा सकता कि विश्वक्षितिज के महाश्लाका महापुरुष रावण समूचे ब्रह्मांड का अकेला ऐसा अजूबा और अनूठा महामार्तंड है, जिसके क़द और करिश्मे के सामने विश्व व सभ्यता के सारे जाने-अनजाने किरदार बौने और फीके पड़ जाते हैं.

रावण त्रिकालदर्शी, तीन लोकों का परम विजयी, महाबली, श्रमण संस्कृति का चितेरा और उसका संरक्षक था. वह न केवल अद्वितीय विश्वदृष्टा और युगांतकारी दिग्विजेता था, बल्कि विद्याओं, कलाओं, तंत्र-मंत्र, ज्योतिष, प्रकृति, ग्रह-नक्षत्रों और दार्शनिक रहस्यों का अधिष्ठाता, शोधक और भाष्यकार भी था. पाताल से आकाश तक, चांद-सूरज से तारों और ग्रहों तक फैले ज्ञान का वह अद्वितीय प्रदाता था.

इतिहास का यह चमकदार यायावर लाखों वर्षों के भूत और भविष्य के रहस्यों को उद्घाटित करने वाला विश्व का दुर्लभ शिखर था. उसके आगे विश्व के सारे योग, मनोयोग, मनोरथ और पुरुषार्थ फीके और बौने प्रतीत होते हैं.

रावण और दलित-आदिवासी समाज की आस्था

देश की अस्सी प्रतिशत जनसंख्या—दलित, महादलित, आदिवासी, वनवासी, पिछड़े और महापिछड़े—जिन्हें तथाकथित ऊंची जातियों ने म्लेंच्छ कहकर तिरस्कृत किया, वे सब रावण को अपना दैव और महानायक मानते हैं. जैन परंपरा तो उसे अगला तीर्थंकर बताती है.

फिर भी विरोधाभास यह है कि यदि राम के हाथों मृत्यु का वरण करके रावण मोक्ष को प्राप्त कर चुका, तो हमें क्या अधिकार है कि हम हर साल उसके पुतले जलाकर केवल बाहरी जश्न मनाएं, जबकि हमारे अपने जीवन के पाप और दुष्कृत्य वैसे ही बने रहें?

रावण : श्रमण संस्कृति का साधक और रक्षक

रावण श्रेष्ठतम श्रमणोपासक था. वह श्रमण संस्कृति का महान साधक, उपासक, पालक और पुजारी था. उस समय की कुत्सित धार्मिक व्यवस्थाओं में यज्ञ-हवन के नाम पर जीवों की बलियां दी जाती थीं, पशुओं को तड़पाकर राक्षसी कत्लेआम किए जाते थे और इसे धर्म का अनिवार्य हिस्सा माना जाता था.

इसी अमानवीय, रक्तपाती और पिशाची परंपरा के विरुद्ध रावण ने ताल ठोकी. उसने मज़लूमों, पीड़ितों और असहायों की रक्षा की और श्रमण संस्कृति की आधारभूत मान्यताओं को मजबूत करके मानवता को बचाने का महान कार्य किया. यही कारण है कि उसके इस पुरोधा कार्य को पलटने के लिए उसे पापी, राक्षस और असत्यवादी कहकर अपमानित किया गया.

छद्म इतिहास और झूठी कहानियां गढ़ी गईं, किंवदंतियां फैलाई गईं और कपोलकल्पित किस्सों को धर्म का नाम देकर प्रचलित किया गया. तब से देश में रावण के प्रति घृणा और नफ़रत की आड़ में उसके पुतले जलाए जाने लगे.

रावण-दहन : एक सामाजिक और धार्मिक विडंबना

यह एक रोचक तथ्य है कि जिन हिंदी प्रदेशों में सामंती प्रथा और धार्मिक लुटेरों का वर्चस्व अधिक था, वहीं रावण के सबसे अधिक पुतले जलाए जाते हैं. जबकि दक्षिण भारत, पूर्वोत्तर और पश्चिमी भारत के अधिकांश क्षेत्रों में दशहरा तो मनाया जाता है, लेकिन रावण-दहन प्रायः नहीं होता.

इसी प्रकार जैन समाज में भी, मात्र दस प्रतिशत घोर हिंदूवादी जैनों को छोड़कर, नब्बे प्रतिशत से अधिक जैन दशहरा तो मनाते हैं परंतु रावण-दहन में भाग नहीं लेते. क्योंकि जैन मान्यता स्पष्ट कहती है कि श्रमण संस्कृति के इस महान पुरोधा रावण के पुतले जलाना और जलते देखना हेय, पाप और अधर्म है.

हर जैनी जानता है कि रावण आज चाहे किसी गति में कहीं भी हो, पर वह हमारा अगला होने वाला तीर्थंकर है. इसलिए जैनियों को न केवल रावण-दहन के पाप से बचना चाहिए, बल्कि उन झूठी और बदले की भावना से गढ़ी कहानियों से भी दूर रहना चाहिए, जिन्होंने उसे घृणित किरदार के रूप में प्रस्तुत किया.

रावण कोई साधारण चरित्र नहीं था. वह विश्वविद्या का अजस्र स्रोत, श्रमण संस्कृति का महानायक और मानवता का रक्षक था. उसके नाम पर गढ़े गए मिथक और झूठे आख्यानों ने उसे राक्षस बनाकर प्रस्तुत किया, परंतु सत्य यह है कि वह कालजयी युगपुरुष था.

रावण का स्मरण हमें केवल उसके पराक्रम के लिए नहीं, बल्कि उसकी श्रमण संस्कृति और मानवता की रक्षा हेतु किए गए महान प्रयासों के लिए करना चाहिए. उसके पुतले जलाना नहीं, बल्कि उसके जीवन और कार्यों से प्रेरणा लेना ही सच्चा धर्म है.

सोहन मेहता क्रांति जोधपुर (राजस्थान) से है, और अपने क्रांतिकारक विचारों के लिए जाने जाते है. वे एक प्रसिद्ध लेखक, पत्रकार, कवी और वक्ता हैं.

यह भी पढिये…..

मुग़ल काल में जैन धर्म और समाज

जैन धर्म पुराना है या हिन्दू धर्म? क्या वैदिक धर्म जैन धर्म से भी प्राचीन है?

दलित और आदिवासियों को जैन धर्म अपनाना चाहिए!

धार्मिक कट्टरतावाद | हर धर्म खतरे में !

Jains & Jainism (Online Jain Magazine)

They Won Hindi (हिंदी कहानियां व लेख)

TheyWon
English Short Stories & Articles

न्यूमरॉलॉजी हिंदी

Please follow and like us:
Pin Share

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *