JITO की असलियत: भाई-भतीजावाद, राजनीति और अनैतिकता का पर्दाफाश

JITO

True Face of JITO

जैन इंटरनेशनल ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (JITO) की असलियत: भाई-भतीजावाद, राजनीति और अनैतिकता का पर्दाफाश

जैन मिशन इन्वेस्टिगेटिव डेस्क द्वारा
jainway@gmail.com

इस लेख में पढिये……

भाई-भतीजावाद: रिश्तों का बोलबाला
छुपा सांप्रदायिक संघर्ष
जैन समाज के बारे में अधूरी जानकारी
गंदी राजनीति और जहरीला माहौल
नेतृत्व की छाया: शीर्ष पर नैतिक पाखंड
दिखावटी परोपकार: आंतरिक असमानता के बीच खोखली कोशिशें
सुधार की जरूरत

जैन इंटरनेशनल ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (JITO), जिसकी स्थापना 2002 में हुई, खुद को जैन सिद्धांतों—अहिंसा, सत्य और ईमानदारी—पर आधारित एक वैश्विक व्यापारिक संगठन के रूप में प्रस्तुत करता है. 100 से अधिक शाखाओं में 10,000 से ज्यादा जैन उद्यमियों को जोड़ने वाला यह संगठन बड़े-बड़े सम्मेलनों, मशहूर हस्तियों के समर्थन और 2023 के JEAP जैसे कार्यक्रमों या 2024 में लखनऊ में शिकायत निवारण जैसे प्रयासों के साथ अपनी छवि चमकाता है. लेकिन इस चमक-दमक के पीछे एक कड़वी सच्चाई छिपी है: भाई-भतीजावाद, आंतरिक राजनीति और अनैतिक व्यवहारों की गहरी जड़ें, जो JITO के दावों को खोखला कर रही हैं. कर्मचारियों की शिकायतें, नियामक जांच और नेतृत्व की कमियां इस संगठन की नैतिकता पर सवाल उठाती हैं.

भाई-भतीजावाद: रिश्तों का बोलबाला

JITO में योग्यता से ज्यादा रिश्तों को तरजीह दी जाती है. 2023 में एक सीनियर फ्रंट ऑफिस एग्जीक्यूटिव ने ग्लासडोर पर लिखा: “यहां भाई-भतीजावाद का बोलबाला है. उंचे पदों पर ऐसे लोग बैठे हैं, जिन्हें अपनी जिम्मेदारी का कोई ज्ञान नहीं.”

बेंगलुरु के एक जोनल मॅनेजर ने भी यही कहा, कि “अत्यधिक दबदबा” कर्मचारियों को सिर्फ बड़े लोगों की सेवा तक सीमित कर देता है. कोलकाता के एक मॅनेजर ने बताया कि “जोन चेयरमैन” ही कर्मचारियों की नौकरी का फैसला करता है, जिससे नौकरी की सुरक्षा सिर्फ खास लोगों के लिए रह जाती है.

एक कर्मचारी ने कहा: “जब तक आप ‘अंदर’ के नहीं, जॉइन न करें.”

यह सिर्फ कर्मचारियों की समस्या नहीं, बल्कि संगठन की संरचना का दोष है. JITO का नेतृत्व, जो रिश्तेदारों और वफादारी पर टिका है, योग्यता को दरकिनार करता है, जिससे कर्मचारियों में नाराजगी बढ़ती है. अहिंसा की बात करने वाला संगठन अपने ही लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है.

छुपा सांप्रदायिक संघर्ष

ऊपरी तौर पर JITO सभी जैनियों की संस्था जानी जाती है, लेकिन इसमें दिगंबरों का स्थान नहीं के बराबर है. माना कि JITO अरबपतियों, पूंजीपतियों का संघटन है, लेकिन क्या दिगंबरों में पूंजीपति और अरबपति नहीं है? लेकिन जीतो वाले उनको दूर ही रखते हैं. दूसरी ओर इस संघटन में श्वेतांबर मूर्तिपूजक और स्थानकवासी इनमे भी एक छुपा संघर्ष है.

जैन समाज के बारे में अधूरी जानकारी

चूं कि यह एक पूंजीवादियों का संघटन है, इनके पदाधिकारियों को आम जैन समाज से कोई संपर्क नहीं होता है. इस कारण उन्हें जैन समाज का का सही स्वरुप मालुम ही नहीं है. उन्हें तो इतना ही मालुम है की जैन समाज में दिगंबर, श्वेताम्बर, स्थानक वासी , तेरापंथी आदि संप्रदाय होते हैं , लेकिन उन्हें इस बात का बिलकुल पता नहीं हैं भारत भर में लाखों किसान, आदिवासी, OBC आदि जैन धर्म के परंपरा से अनुयायी है. JITO इन लोगों तक कभी पहुंची नहीं और पहुंच भी नहीं सकती. क्यों कि पूंजीवादियों को आम जनता से क्या लेना देना?

गंदी राजनीति और जहरीला माहौल

भाई-भतीजावाद JITO की नींव है, तो “गंदी राजनीति” इसका ढांचा. मुंबई के एक बैक ऑफिस एग्जीक्यूटिव ने अगस्त 2024 में कहा: “सीनियर्स बहुत गंदे लोग हैं और माहौल पूरी तरह राजनीतिक है.” एक फ्रंट डेस्क एग्जीक्यूटिव ने “अत्यधिक राजनीति” और “दबंग सीनियर्स” की शिकायत की, जहां सैलरी बढ़ने की कोई गुंजाइश नहीं.

ग्लासडोर पर 2023 की एक समीक्षा में “अनुशासन की कमी” और “अनैतिक व्यवहार” का जिक्र है, जो दिखाता है कि जवाबदेही का अभाव है.

मुंबई के एक मॅनेजर कॉरपोरेट अफेयर्स ने इसे “काम करने की अच्छी जगह नहीं” बताया, जबकि कोलकाता की समीक्षाएं “खराब प्रबंधन” और “सदस्यों के बीच खराब संस्कृति” की बात करती हैं.

कर्मचारियों पर इसका असर भयानक है. “कोई वर्क-लाइफ बैलेंस नहीं” और “उचित वर्कस्पेस का अभाव” (बेंगलुरु, 2023) जैसी शिकायतें आम हैं. रायपुर के एक ऑफिस असिस्टेंट और मुंबई के सीनियर एग्जीक्यूटिव ने भी इस निराशाजनक माहौल को उजागर किया.

नेतृत्व की छाया: शीर्ष पर नैतिक पाखंड

JITO का नेतृत्व इन कमियों को और बढ़ाता है. मोतीलाल ओसवाल, जो JITO के पूर्व अध्यक्ष और जैन एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रेनिंग फाउंडेशन (JATF) के बोर्ड सदस्य हैं, संगठन का चेहरा हैं. लेकिन उनकी कंपनी, मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज पर बार-बार गलत कामों के आरोप लगे हैं. एक उपभोक्ता अदालत में एक छोटे निवेशक ने अनधिकृत ट्रेड्स के कारण अपनी पूंजी “खत्म” होने का मामला जीता, लेकिन SEBI का हस्तक्षेप नाकाफी था.

2025 में एक रेडिट थ्रेड ने इस ब्रोकर को “धोखेबाज” करार दिया, जो घोटाले से जुड़े जेन्सोल इंजीनियरिंग जैसे स्टॉक्स में निवेश करता था. 2024 में SEBI ने IPO से जुड़े उल्लंघनों के लिए जुर्माना लगाया था.

यह सवाल उठता है: जब JITO के नेता खुद विवादों में घिरे हैं, तो यह संगठन नैतिक व्यापार की बात कैसे कर सकता है? नेटवर्किंग इवेंट्स, जो नैतिकता का प्रचार करते हैं, अक्सर खास लोगों के लिए गूंजने वाली जगह बन जाते हैं, जैसा कि कर्मचारियों ने सोशल मीडिया पर बताया.

रात को होटलों में दी जानेवाली पार्टियां JITO की एक खास विशेषता है.

दिखावटी परोपकार: आंतरिक असमानता के बीच खोखली कोशिशें

JITO के सार्वजनिक प्रयास, जैसे 2020 का COVID राहत कार्य या रक्तदान शिविर, उसकी छवि चमकाने के लिए हैं. लेकिन जब कर्मचारी जहरीले माहौल की शिकायत करते हैं, तो ये प्रयास खोखले लगते हैं. 2025 का यूथ कॉन्क्लेव, जिसमें लोकसभा स्पीकर ने विकसित भारत पर बात की, कर्मचारियों की अनसुनी शिकायतों के बीच बेमानी लगता है. अगर JITO अपने भीतर निष्पक्षता नहीं रख सकता, तो उसका बाहरी परोपकार विश्वसनीय नहीं.

सुधार की जरूरत

JITO की इन समस्याओं पर चुप्पी—ग्लासडोर और एम्बिशनबॉक्स की समीक्षाओं में साफ दिखती है—चौंकाने वाली है. अपनी साख बचाने के लिए JITO को चाहिए:

  • नेतृत्व की जांच: पदाधिकारियों की नियुक्तियों में योग्यता को प्राथमिकता, रिश्तों को नहीं. भाई-भतीजावाद ख़त्म करें.
  • राजनीति पर रोक: गुमनाम शिकायत प्रणाली और नैतिकता प्रशिक्षण. संघटन के अंदर भी राजनीति नहीं चाहिए, और संघटन किसी राजनितिक पार्टीविशेष का समर्थक नहीं होना चाहिए.
  • समावेशिता: जैन समाज के सभी वर्गों और घटकों को प्रतिनिधित्व मिले. संघटन केवल पूंजीपतियों का नहीं होना चाहिए, इसमें हर क्षेत्र के लोगों का होना चाहिए, जैसे बुद्धिजीवी (शिक्षक, विद्वान, इतिहासकार, पब्लिक स्पीकर आदि), पत्रकार, कलाकार (गायक, संगीतकार, अभिनेता, गीतकार आदि) खिलाडी, सेना और पुलिस के रिटायर्ड अफसर, रिटार्यड सरकारी अफसर, समाजसेवक, डॉक्टर्स, वैज्ञानिक, शिक्षा प्रचारक, मोटीवेटर्स, आदि.
  • बेहतर माहौल: वर्क-लाइफ बैलेंस और निष्पक्ष कार्यस्थल. संघटन में काम करने वाले कर्मचारियों का शोषण न हो.

इनके बिना, JITO एक ऐसा व्यापारिक संगठन चेतावनी बन जाएगा जो जैन विरासत का इस्तेमाल तो करता है, लेकिन उसे कमजोर करता है.

स्रोत: जैन मिशन इन्वेस्टिगेटिव डेस्क, ग्लासडोर, एम्बिशनबॉक्स, नियामक दस्तावेज और सार्वजनिक रिकॉर्ड.

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