
धिरज जैन
विगनिज्म करुणा, पर्यावरण और नैतिक जीवन पर आधारित है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक प्राचीन आध्यात्मिक परंपरा है, जो इन मूल्यों से पूरी तरह मेल खाती है? जैन धर्म, जो दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है, अहिंसा, नैतिक उपभोग और सभी जीवों के प्रति सम्मान सिखाता है. जैन धर्म को अपनाकर विगन्स अपनी जीवनशैली को एक गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक स्तर पर ले जा सकते हैं.
जैन धर्म का मूल सिद्धांत अहिंसा है. जहां विगन्स केवल पशु-उत्पादों का उपभोग नहीं करते, वहीं जैन धर्म अहिंसा को और भी आगे ले जाता है. जैन सिर्फ मांस और डेयरी उत्पादों से परहेज नहीं करते, बल्कि छोटे-से-छोटे जीवों, जैसे कि कीड़े और सूक्ष्म जीवों को भी नुकसान नहीं पहुंचाते. यह जागरूकता जीवन के प्रति गहरे सम्मान को बढ़ावा देती है, जिससे सावधानीपूर्वक भोजन करने की प्रवृत्ति विकसित होती है.
वास्तव में आधुनिक विगनिज्म का मूल प्राचीन जैन ग्रंथों में पाया जा सकता है, जिसमें किसी भी प्राणिज पदार्थ के उपयोग का निषेध किया गया है. इस विषय पर मैं एक अलग लेख लिखूंगा.
जैन आहार: विगनिज्म से भी आगे….
जैन सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं, जिसमें प्याज, लहसुन, आलू , बिट जैसी जड़ वाली सब्ज़ियां शामिल नहीं होतीं. इसका कारण यह है कि इन पौधों को उखाड़ने से पूरा पौधा नष्ट हो जाता है, जबकि फल, अनाज और बीन्स जैसे खाद्य पदार्थ लेने से पौधे जीवित रहते हैं. यह विचारधारा हिंसा को न्यूनतम करने के नैतिक लक्ष्य से जुड़ी है, जो विगनिज्म की भावना से भी मेल खाती है. जमीकंद न खाने के पीछे दूसरा कारण यह भी है कि उसे खाने से तामसिक प्रवृत्ति बढ़ जाती है, जिससे भी हिंसा को बढ़ावा मिलता है.
जैन लोग ताजा पका हुआ भोजन खाने पर जोर देते हैं और रातभर रखा भोजन नहीं खाते, ताकि जीवाणुओं का अधिक विकास न हो. यह आदतें भोजन के प्रति एक और भी अधिक जागरूक दृष्टिकोण को बढ़ावा देती हैं.
धार्मिक जैन लोगों की एक और विशेषता यह है कि वे लोग सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करते, क्यों कि सूर्यास्त के बाद भोजन में कीड़े-मकौडे और सुखम जीव गिर जाने की संभावना होती है. इसके अलावा वे किण्वित (Fermented) खाद्य पदार्थों से भी बचते हैं क्योंकि इनमें बहुत अधिक मात्रा में सूक्ष्मजीव होते हैं.
पर्यावरण संरक्षण
विगनिज्म अक्सर पर्यावरण संरक्षण से प्रेरित होता है. जैन धर्म इस सोच को अपरिग्रह के माध्यम से और आगे बढ़ाता है, जो भौतिक चीजों और उपभोग को कम करने पर जोर देता है. यह जीवनशैली स्वाभाविक रूप से स्थिरता को बढ़ावा देती है, पारिस्थितिक क्षति को कम करती है और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करती है.
जैन साधु-संत न्यूनतम वस्तुओं के साथ जीवन व्यतीत करते हैं, केवल आवश्यक चीजों का ही उपयोग करते हैं. आम जैन भी अनावश्यक खरीदारी से बचते हैं और सादगी को अपनाते हैं. अगर विगन्स अपरिग्रह को अपनाएं, तो वे अपने पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को आहार से आगे बढ़ाकर संपूर्ण जीवनशैली में परिवर्तित कर सकते हैं.
आध्यात्मिक और मानसिक विकास
कई विगन्स अपनी जीवनशैली में पहले से ही जागरूकता का पालन करते हैं, लेकिन जैन धर्म एक व्यवस्थित मार्ग प्रदान करता है जो आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देता है. ध्यान, आत्म-अनुशासन और अनावश्यक विलासिता से दूर रहकर जैन लोग आंतरिक शांति और आत्म-जागरूकता विकसित करते हैं. यह उन विगन्स के लिए एक स्वाभाविक प्रगति हो सकती है जो भोजन से परे एक गहरे उद्देश्य की खोज कर रहे हैं.
जैन धर्म में सम्यक दर्शन (सही दृष्टिकोण), सम्यक ज्ञान (सही ज्ञान) और सम्यक चरित्र (सही आचरण) को आत्मज्ञान प्राप्त करने के महत्वपूर्ण स्तंभ माने जाते हैं. यह दृष्टिकोण नैतिक मूल्यों को और मजबूत करता है.
इसके अतिरिक्त, जैन लोग समय-समय पर उपवास करते हैं, जिससे शरीर और मन की शुद्धि होती है. समय-समय पर उपवास आत्म-अनुशासन और मानसिक स्पष्टता विकसित करने का एक तरीका हो सकता है.

करुणा: जीवन का आधार
विगनिज्म का मुख्य उद्देश्य जानवरों के प्रति करुणा रखना है, लेकिन जैन धर्म इस दयालुता को सभी जीवों, यहां तक कि मनुष्यों तक भी बढ़ा देता है. जैन धर्म क्षमा, ईमानदारी और विनम्रता को प्रोत्साहित करता है, जिससे एक संपूर्ण नैतिक प्रणाली बनती है जो विगनिज्म के मूल सिद्धांतों से मेल खाती है.
जैन दर्शन में अनेकांतवाद की अवधारणा है, जिसका अर्थ है कि सत्य के कई पहलू होते हैं और कोई भी एक दृष्टिकोण पूर्ण सत्य नहीं हो सकता. यह विचारधारा सहिष्णुता और समझ को बढ़ावा देती है, जिससे लोग दूसरों के साथ अधिक सहानुभूति और धैर्य के साथ संवाद कर सकते हैं.
जैन धर्म का विगनिज्म और आधुनिक नैतिकता पर प्रभाव
जैन दर्शन ने कई नैतिक आंदोलनों को प्रभावित किया है, जिनमें आधुनिक विगनिज्म के कुछ तत्व भी शामिल हैं. जैन धर्म की अहिंसा का विचार महात्मा गांधी को भी प्रेरित कर चुका है, जिन्होंने अपने जीवन में सिर्फ आहार ही नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में अहिंसा का पालन और प्रचार किया.
आजकल जैन समाज में विगनिज्म का प्रचलन तेजी से बढ रहा है, यह मानते हुए कि डेयरी उद्योग में गायों और भैंसो को काफी कष्ट झेलना पड़ता है. पारंपरिक जैन धर्म में यदि दूध अहिंसा के साथ प्राप्त किया जाए तो इसे स्वीकार किया जाता था, लेकिन आधुनिक जैन लोग इस विचारधारा को और भी परिष्कृत कर रहे हैं और विगनिज्म को अपना रहे हैं. यह दिखाता है कि जैन धर्म और विगनिज्म स्वाभाविक रूप से एक ही नैतिक लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं.
जैन जीवनशैली और शारीरिक तंदुरुस्ती
अपनी विशेष जीवनशैली और आहार के नियमों के कारण जैन लोग औरों की तुलना में ज्यादा समय तक जीनेवाले, चुस्त, फुर्तीले, तेज दिमागवाले, शांत स्वभाव वाले और तंदुरुस्त होते हैं. वे समाज के जरूरतमंद लोगों की मदत करनेवाले और दूसरों की मदत करनेवाले होते है. दान करना और सेवा करना उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग होता है. समाज में शिक्षा का प्रचार करने में यह लोग अग्रेसर होते है.
विगन्स और जैन धर्म
जो विगन्स अपनी नैतिक प्रतिबद्धताओं को और गहराई देना चाहते हैं, उनके लिए जैन धर्म करुणा, स्थिरता और जागरूकता को बढ़ाने का एक बेहतरीन तरीका है. जैन सिद्धांतों को अपनाकर, वेगन्स केवल आहार तक सीमित न रहकर जीवन के हर क्षेत्र में अहिंसा को लागू कर सकते हैं. ऐसा करने से वे न केवल जानवरों और पर्यावरण की रक्षा करेंगे, बल्कि आत्मज्ञान और आंतरिक शांति की ओर भी कदम बढ़ाएंगे.
जैन धर्म को अपनाने का अर्थ यह नहीं कि आपको धार्मिक होना पड़ेगा—बल्कि इसका मतलब है कि आप एक ऐसा जीवन अपनाना हैं जो दयालुता, नैतिक जागरूकता और सभी जीवों के प्रति सम्मान पर आधारित हो. वैसे भी जैन धर्म अपनाने के लिए किसी विधि या कर्मकांड करने की जरुरत नहीं होती है, और कोई भी व्यक्ति जैन जीवनशैली को अपनाकर जैन बन सकता है. जो विगन्स पहले से ही करुणा का अभ्यास कर रहे हैं, उनके लिए जैन धर्म एक आध्यात्मिक और दार्शनिक आधार प्रदान कर सकता है, जिससे उनकी जीवनशैली और अधिक समृद्ध और अर्थपूर्ण बन सकती है.
यह भी पढिये…..
दलित और आदिवासियों को जैन धर्म अपनाना चाहिए!
धार्मिक कट्टरतावाद | हर धर्म खतरे में !
भाग्यशाली तो वह है जो कर्म से जैन होते हैं…
साध्वी सिद्धाली श्री: आध्यात्मिकता और सामाजिक सक्रियता का संगम
Jains & Jainism (Online Jain Magazine)
They Won Hindi (हिंदी कहानियां व लेख)
TheyWon
English Short Stories & Articles
सच तो ये है कि ज्यादातर जैन लोग डेयरी के उत्पादों का सेवन करते है।तो जैन धर्म अपनाना वैगन लोगों के लिए गलत होगा।