यादव वंश का इतिहास और जैन धर्म | Yadav

महावीर सांगलीकर

jainway@gmail.com

यादव वंश का इतिहास

यादव भारत का एक प्राचीन वंश है. प्राचीन भारत के प्रमुख  और महत्व पूर्ण वंशों में इसकी गिनती होती है. इस वंश की शुरुआत यदु से हो गयी.

प्राचीन काल में यादव वंश में यादवों के अलावा अभीर, अंधक, वृष्णी आदि कुल भी आते थे, क्यों कि यह सब यदु के वंशज थे. उसी प्रकार चेदी, भोज आदि भी यदु के वंशज थे.

प्राचीन भारत के कई वंश बाद में लुप्त हो गये, लेकिन यादव वंश के वंशज आज भी बड़ी संख्या में दिखाई देते है. यह पूरे भारत में फैले हुये है. उत्तर प्रदेश, बिहार में यादव यह एक बड़ी जाती है. आज के भारत में यादवों के अलावा अहीर, भट्टी रजपूत, पंजाब के सैनी, महाराष्ट्र के जाधव, राजपूतों के जादोन, जडेजा आदि कुल के लोग यदु के वंशज है.

महाराष्ट के मराठा समाज में जाधव नाम का कुल है जो मूल रूप से यादव ही है. जाधव कुल की विशेषता यह है कि इस कुल में 150 से ज्यादा उपकुल हैं. इसका कारण यह है कि ज्यादा संख्या होने के कारण इस कुल के लोगों का उप कुलों में विभाजन हो गया.

इसी प्रकार भारत की रजपूत, जाट आदि कई प्रमुख जातियों में यादव कुल दिखाई देता है. दक्षिण भारत की कई जातियों में भी यादव कुल दिखाई देता है.

आज जादातर यादव लोग शैव या वैष्णव है. लेकिन कुछ यादव जैन धर्म के अनुयायी हैं.

यादव वंश का इतिहास

प्राचीन काल के यादव और जैन धर्म

यादव वंश का जैन धर्म से प्राचीन काल से नजदीकी सम्बन्ध है.

भगवान श्रीकृष्ण और भगवान नेमिनाथ

भगवान श्रीकृष्ण यादव वंश के सबसे ज्यादा प्रभावी और प्रसिद्ध व्यक्तित्व थे. इनके एक चचेरे भाई थे अरिष्टनेमि. इनको नेमिनाथ भी कहा जाता है. यह अरिष्टनेमि आगे चलकर जैन धर्म के तीर्थंकर हुए. यह 22वे तीर्थंकर थे. जैन परंपरा मेँ इनकी मूर्ति पर शंख का चिन्ह होता है. यह चिन्ह यादव वंश से संबंधित है.

यदुकुल के शूरसेन नाम के प्रसिद्ध राजा हुए, जिनके दस पुत्र थे. इनमें सबसे बड़े थे समुद्रगुप्त और सबसे छोटे थे वासुदेव. इस प्रकार समुद्रगुप्त और वासुदेव सगे भाई थे. वासुदेव और देवकी के पुत्र थे श्री कृष्ण और समुद्रगुप्त और शिवादेवी के पुत्र थे अरिष्टनेमि.

आगे चलकर अरिष्टनेमि का विवाह राजा उग्रसेन की पुत्री राजीमती से तय हो गया. यह राजा उग्रसेन श्रीकृष्ण के नाना, अर्थात देवकी के पिता थे.

भगवान श्रीकृष्ण की शस्त्र शाला में राजकुमार अरिष्टनेमि भगवान श्रीकृष्ण का शंख बजाते हुए. यह कहानी प्राचीन जैन ग्रंथो में आती है. उसके अनुसार बनाया गया यह चित्र तिजारा के भगवान पार्श्वनाथ मंदिर में लगाया गया है.

कई विद्वानों का मत है की भगवान श्री कृष्ण के गुरु ऋषि घोर अंगिरस वास्तव में अरिष्टनेमि ही थे.

जैन परंपरा में यादव वंश और भगवान श्री कृष्ण

प्राचीन जैन साहित्य के कई ग्रंथों में यादव वंश, भगवान श्री कृष्ण का और भगवान अरिष्टनेमि का वर्णन कई बार और विस्तार से आया है.

अंतगडदसा सूत्र  इस ग्रन्थ में अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण का विस्तार से वर्णन किया गया है. यह ग्रन्थ जैन धर्म के प्राचीनतम ग्रंथों में से एक है. वसुदेव हिंडी नामक दूसरे एक प्राचीन जैन धर्म ग्रन्थ में भगवान श्रीकृष्ण के पिताजी वासुदेव का विस्तार से वर्णन है.

जैन परंपरा में 63 व्यक्तियों महानतम माना गया है. उन्हें त्रिषष्टि शलाका पुरुष कहा जाता है. इनमें 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलभद्र, 9 वासुदेव (नारायण) और 9 प्रतिवासुदेव (प्रतिनारायण) हैं. विशेष बात यह है कि इन 63 शलाका पुरुषों में 3 यादव वंश से और एक ही परिवार से हैं! वह हैं :

  • बलराम (भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई), 9 बल भद्रों में से एक.
  • भगवान श्रीकृष्ण
  • तीर्थंकर अरिष्टनेमि (भगवान श्रीकृष्ण के चचेरे भाई), जैन धर्म के 22 वे तीर्थंकर

यादव वंश का इतिहास

मध्य काल में यादव और जैन धर्म

देवगिरी के यादव

देवगिरी (महाराष्ट्र) के यादवों ने भारत के एक बड़े क्षेत्र पर सन 860 से 1317 तक राज्य किया. इनका राज्य उत्तर में नर्मदा नदी के तट से लेकर दक्षिण में तुंगभद्रा नदी के तट तक फैला हुआ था. इनके राज्य में मराठी और कन्नड़ इन दोनों भाषाओं का विकास हुआ, साथ ही जैनधर्म का भी विकास हुआ.

राजा दृढ प्रहार

इस राजवंश का पहला राजा दृढ प्रहार था. नाशिक जिले के अंजनेरी स्थित एक जैन शिलालेख में दृढ़ प्रहार के जन्म की कथा मिलती है. उसी प्रकार 11 वी सदी के जैन आचार्य जिनप्रभ सूरी के ‘नासिक्य कल्प’ इस ग्रन्थ में भी दृढ़प्रहार की जानकारी मिलती है. उसके अनुसार यह एक जैन राजा था और उसने भगवान चन्द्रप्रभ के मंदिर का निर्माण किया था. इस राजवंश में आगे भी कई जैन राजा हुए. उनमें सेउण चंद्र , सेउन चंद्र, सेउन चंद्र द्वितीय, भिल्लम (प्रथम), भिल्लम (पंचम), जैत्रपाल, कृष्ण, रामचंद्र, महादेव आदि नाम उल्लेखनीय है.

देवगिरी

यादवों की राजधानी देवगिरी थी. देवगिरी के किले पर एक मध्य युगीन जैन मंदिर था जिसे अब भारतमाता मंदिर के नाम से जाना जाता है. पुणे विश्व विद्यालय, मराठवाडा विश्वविद्यालय और डेक्कन कॉलेज पुणे के द्वारा देवगिरी के किले पर किये गए उत्खनन में कई जैन मूर्तियां और अन्य अवशेष पाये गए. निष्कर्ष यह निकाला गया कि यहां और एक बडा जैन मंदिर था. यह जैन अवशेष व प्रतिमाएं देवगिरी के म्यूजियम में सुरक्षित रखी गयी है.

महाराष्ट्र और कर्नाटक में यादवों के कई शिलालेख हैं. उनमें जैन धर्म से सम्बन्धित कई उल्लेख मिलते हैं, जैसे कि किसी यादव राणी या राजा ने जैन मंदिर के लिए भूमि का दान देना, या जैन मंदिर को बंधवाना आदि.

एक उल्लेखनीय बात यह है कि देवगिरी के यादवों की रानियां ज्यादातर जैन धर्म की अनुयायी होती थी, और वह ज्यादातर कर्नाटक से होती थी. यादवों के कई सेनाधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी भी जैन धर्म के अनुयायी थे.

यादव वंश का इतिहास

यादव और यापनीय संप्रदाय

और एक उल्लेखनीय बात यह है कि यादव काल में जैन धर्म के यापनीय संप्रदाय का तेजी से विकास हुआ. यह संप्रदाय दिगंबर और श्वेताम्बर संप्रदाय का समन्यव साधनेवाला सम्प्रदाय था. चौदहवी सदी की शुरुआत में यादव राजवंश का अंत हुआ, और उसके बाद कुछ ही दशकों में यापनीय संप्रदाय भी नष्ट हुआ.

दक्षिण भारत के यादव

इसी प्रकार दक्षिण में विजयनगर साम्राज्य के सम्राट व होयसल वंश के राजा भी यादव थे और उनका जैन धर्म से गहरा रिश्ता था. होयसल वंश की स्थापना जैन आचार्य सिंहनन्दी ने की थी. इस बारे में मैं विस्तार से एक अलग लेख लिखूंगा.

आधुनिक काल में यादवों में जैन धर्म

तो अब आप सोचते होंगे की क्या आज भी यादवों में जैन धर्म के अनुयायी हैं?

मैं भी इस प्रश्न का उत्तर कई दिनों तक ढूंढता रहा. अब मुझे पता चला है उत्तर प्रदेश के शौरिपुर इस जैन तीर्थ क्षेत्र के आसपास और अन्य भी कुछ स्थानों पर परंपरा से जैन धर्म का पालन करनेवाले कई यादव हैं. शौरिपुर वह स्थान है जहां भगवान श्रीकृष्ण और भगवान नेमिनाथ का जन्म हुआ था. यह जैन यादव शौरिपुर के जैन मंदिरों की तीर्थयात्रा भी करते रहते हैं.

उत्तर भारत के जैन समाज की लमेचुवाल वाल जाति वास्तव में जैन धर्म का पालन करने वाले यादव लोगों का समूह है. इनमें जैन सरनेम तो होता ही है, साथ ही यादव, ठाकुर आदि सरनेम भी पाए जाते है.

आधुनिक काल मेँ यादव समाज से कुछ जैन मुनि भी हुए हैं. उनमें से एक प्रसिद्ध मुनि हैं रमणीक मुनि. रमणीक मुनि बड़े ही उदार विचारों के हैं.

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4 thoughts on “यादव वंश का इतिहास और जैन धर्म | Yadav

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